इश्क़ का अंजाम पार्ट-1

 आप ये स्क्रिप्ट मेरे पास लेकर आएं इसमें मुझे कोई हैरानी नहीं है लेकिन मुझे तो ये सोच कर ताज्जुब हो रहा है कि आपने सोच भी कैसे लिया कि मैं इस लो बजट फिल्म को करने के लिए तैयार हो जाऊंगा ? सार्थक ने अपनी बांहों को कुर्सी के सहारे टिकाते हुए डायरेक्टर की तरफ आँखें बनाते हुए कहा ।

मैं जानता हूँ कि आपने अपने करियर के शुरूआती फेज में ही कुछ लो बजट फ़िल्में की हैं उसके बाद इन 10 सालों में आपने हाई बजट की फिल्मों को ही अपनी लिस्ट में फर्स्ट रखा है । इसीलिए तो आज आप इस मुकाम पर है कि लगातार 11 फ़िल्में सुपरहिट गयीं हैं आप की और आपके करियर का ग्राफ इतना ऊंचा उठ गया हैं । आपके इस बढ़ते ग्राफ को और ऊंचा उठाने के लिए ही तो मैं ये फिल्म लेकर आया हूँ आपके पास। आप यकीन कीजिए इस फिल्म को करने के बाद आपको खुद रियलाइज होगा कि आपने क्या किया है । ये एक मास्टरपीस है आपकी बाकी फिल्मों के रोल्स से पूरी तरह अलग । डायरेक्टर के हाथ में कुछ पन्ने फडफ़ड़ा रहें थें जो हलके गंदे लग रहें थें और मुड़े हुए भी। जो ये साबित करने के लिए काफी थें कि ये स्टोरी पूरी सुनाई जा चुकी थी। डायरेक्टर किसी भी तरह सुपरस्टार सार्थक मल्होत्रा को अपनी फिल्म में कास्ट करना चाहता था और उसके लिए जरूरी था सार्थक का स्क्रिप्ट पर हाँ कहना , जिसके लिए वो कोशिश कर रहा है ।

देखिये सार्थक सर, आपको ऐसे रोल में देखकर ऑडियंस थिएटर में पागलों की तरह टूट पड़ेगी । आज तक आपको लोगों ने एंग्री बॉय , एक्शन पर्सन और आपकी डांसिंग स्किल्स के लिए ही जाना है लेकिन बिलीव मी । इस तरह के टूटे हुए किरदार में आपका एक अलग ही रूप दर्शकों के सामने आएगा और …

तो आप चाहते है कि मैं एक हारे हुए आशिक़ का रोल करूँ जो अपने हाथों से अपनी gf को किसी और को सौंप देता है और खुद अपनी जिंदगी उसकी फोटो के सहारे काटता हैं । उसकी फोटो को जलने से बचाने के लिए ही खुद की जान दे देता है। वाह…. ! सार्थक अपनी तालियां बजाने लगता है । इससे डायरेक्टर को थोड़ा हिम्मत मिलती है और वो कुछ और बोलने के लिए खुद को तैयार करता है लेकिन इससे पहले ही सार्थक बोल पड़ता है ।

आपकी तारीफ करता हूँ मैं कि आपने इतनी घटिया किस्म की स्क्रिप्ट मेरे पास लाने की हिम्मत की । लेकिन आपको क्या लगता है कि अपने कैरेक्टर के उलट मैं ऐसी कोई फिल्म साईन करूँगा? जिसने आज तक अपना पेन भी नहीं खोया हैं आप चाहते है वो अपना प्यार खोये? जिसने किसी चीज में कभी हार नहीं मानी वो इस तरह परदे पर रोता बिलखता दिखे? सार्थक के मुँह पर गुस्से की लकीर उतर आयी थी और डायरेक्टर के चेहरे पर घबराहट की। वो आगे बोला –

हाँ आपने क्या बोला था कि हाई बजट की फिल्मों ने मेरा करियर बनाया ! मिस्टर केशव बजाज… ! इतना कहते-कहते वो डायरेक्टर की तरफ अपनी गुस्से वाली आँखों के साथ झुक गया।उन्होंने मेरा करियर नहीं बनाया मैंने बनाया हैं उन्हें The best movies और आप जैसे प्रोड्यूसर-डायरेक्टर्स का करियर भी समझे आप। उसने टेबल पर अपना हाथ पटकते हुए कहा। उसकी इस हरकत से डायरेक्टर थोड़ा सहम गया लेकिन उसने चेहरे पर ये आने नहीं दिया क्योंकि वो इस बात के लिए तैयार होकर आया था। इंडस्ट्री में सभी उसके गुस्से, घमंड और रुड व्यवहार से वाकिफ थें। उसके इसी रवैय्ये की वजह से ही बड़े-बड़े प्रोड्यूसर-डायरेक्टर्स भी उसे अपनी फिल्म में लेने से डरते थें और उसके को-स्टार्स तो शूट ख़त्म होते ही उससे दूर जाकर बैठ जातें थें। अगर किसी को-स्टार की वजह से उसका सीन खराब हो जाता था तो वो उसे अपनी वैनिटी वैन में बुलाकर खूब डांटता था और तो और अगर कोई को स्टार उसे पसंद नहीं होता था तो रातों-रात उसे फिल्म से रिप्लेस करवा देता था। इसके बावजूद लोगों की मजबूरी थी कि न चाहते हुए भी लोगों को उसके साथ काम करना पड़ता था क्योंकि उसका फिल्मों में होना ही उस मूवी के हिट होने की गारंटी होती है, जो एक्टर-एक्ट्रेस उसके साथ काम कर लेते थें उनके लिए बॉलीवुड की रहें खुल जाती थीं।इन 10 सालों में उसनें 32 फ़िल्में दी हैं जिसमें से उसकी शुरआती दो फिल्मों को छोड़कर सभी औसत हिट सुपरहिट और ब्लॉकबस्टर रहीं हैं । इसीलिए दिन रात उसके घर के बाहर प्रोड्यूसर-डायरेक्टर्स की लाइन लगी रहती थी और वो साल के 365 दिन काम में ही बिजी रहता था। भले ही इंडस्ट्री के अंदर उसका ये रवैय्या था लेकिन मीडिया में और अपने फैंस के बीच वो काफी जेंटल , पोलाइट , क्यूट और सेक्सी इमेज का था। कॉलेज जाने वाली शायद ही कोई ऐसी लड़की हो जिसका उसपर क्रश न हो , ऐसा हो भी क्यों न 6 फ़ीट 2 इंच की लम्बाई और लाइट ब्लू आँखें , जिम में दिनरात मेहनत करके बनाई गई 8 एब्स की मस्कुलर बॉडी उसपर से हर दूसरी फिल्म के तीसरे सीन में उसका शर्टलेस होना। लड़कियों के साथ साथ कई लड़के भी उसकी फिजिक से प्रभावित थें और उसी की स्टाइलिंग को कॉपी करने की कोशिश करते थें। उसकी इसी पॉपुलरिटी को देखकर ही तो न चाहते हुए भी कई फिल्मों में उसे लेना पड़ता था । आज तक किसी ने भी मीडिया में आकर ये नहीं कहा कि सार्थक का रियल एडिट्यूट क्या है क्योंकि सभी जानतें थें कि ऐसा करना खुद अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना है। उससे नाराजगी लेना मतलब पूरी इंडस्ट्री से ही अपना पल्ला झाड़ लेना।

आप ने मेरी बात को गलत तरीके से लिया है मैं बस इतना ही कह रहा था कि. …

कोई जरूरत नहीं हैं आपको अपनी बात एक्सप्लेन करने की, आप पहले ही अपना टाइम ख़त्म कर चुके है अब मेरे पास आपको देने के लिए एक मिनट भी नहीं है। इसीलिए आप प्लीज यहाँ से जा सकतें हैं क्योंकि अभी मुझे किसी बेहद काम से बाहर जाना है , तो मैं यहाँ आपके साथ एक और मिनट नहीं रुक सकता। सार्थक बार-बार खड़ी की तरफ देख रहा था।

ओके अगर आप कहते है तो मैं जाता हूँ लेकिन आप इस स्क्रिप्ट पर सोचने की कोशिश कीजियेगा और जब भी आपको लगे कि आपको ये फिल्म करनी चाहिए तो you can call me anytime. 

जैसा की मैंने पहले ही कहा कि मुझे आपकी लो बजट फिल्म में कोई इंटरेस्ट नहीं हैं । उसने ये बात बिल्कुल हलके अंदाज से कही।

अगर बजट थोड़ा बढ़ा दिया जाएँ तो ?

जैसा की आप जानते है कि मेरा एक-एक मिनट कितना कीमती होता है उसके बाद भी आप मेरा वक्त बर्बाद कर रहें हैं । सार्थक की आवाज में सख्ती थी। उसकी इस बात का इशारा डायरेक्टर समझ चुका था । इसीलिए उसने वहां से चलने में ही अपनी भलाई समझी। लेकिन वहाँ से निकलते-निकलते उसने इतनी बेइज्जती के बाद भी न जाने किस उम्मीद से उसकी तरफ देखा और बोला ,” ठीक है फिर आप सोच कर बताइयेगा।” उसकी ये बात सुन के सार्थक का खून सा खौल उठा जी में आया कि अभी इसे धक्के मार के यहाँ से खुद निकाल दे , लेकिन वो अपना मूड और ज्यादा नहीं खराब करना चाहता था, क्योंकि वाकई उसे कहीं स्पेशल जगह पर जाना था जिसके लिए उसे हैप्पी और फ्रेश रहना था। 

केशव बजाज के जाते ही सार्थक अपने कमरे में गया। थोड़ी देर बाद जब बाहर निकला तो बस देखने वालों की आँखें ही ठहर जाएँ , बाल बिल्कुल करिने से सेट किये हुए, लाइट ब्लू कोट उसी रंग की पैंट जो उसके वाइट शू के थोड़ा ऊपर ही ख़तम हो जाती थी, और बेबी पिंक कलर का शर्ट जो उसने कोट के अंदर पहना था। हाथों में डायमंड से सजी हुई रिस्ट वॉच थी जो किसी पार्टी या स्पेशल वोकेजन पर ही वो पहनता था । आँखों में स्टाइलिश चश्मा लगाए वो चलता हुआ नीचे आ रहा था। लेकिन इन सब से इतर अगर सबसे पहले किसी पर नजर पड़ती तो वो था एक छोटा सा ब्रीफ़केस । जिसे सार्थक अपने हाथों में मजबूती से पकड़े बार-बार देख रहा था और उसे देखकर बार बार मुस्कुरा भी रहा था ।

कल्पना, जब तक मैं आऊं, मेरा रूम अच्छे से डेकोरेट कर देना। फूल सभी ताजे ही होने चाहिए परदे वगैरह भी चेंज करने है। किसी भी चीज की जरूरत हो शक्ति से बोल देना वो लाकर दे देगा। उसने रिस्ट वॉच पर एक नजर डाली और अपनी हॉउस हेल्पर को सारी हिदायतें देता हुआ जल्दी-जल्दी से बाहर आ गया । 

बाहर से देखने पर सार्थक का घर किसी शानदार महल से कम नहीं लग रहा था। बाहर बड़ा सा गार्डन था जिसमें सिर्फ इंडियन वैराइटी के ही नहीं बल्कि विदेशी फूलों की महक भी बिखरी थी। गार्डन में ही किनारे दो पेड़ो के बीच बंधा हुआ एक झूला था। नीचे चारों तरफ हरी घास थी। कुछ मूर्तियां बनी हुई थी पत्थर की , मिट्टी की और लकड़ी की जो एकदम जीती जागती सी लगती थीं। इस गार्डन से होकर घर के दरवाजे तक पहुंचने के रास्ते में लाल पत्थरों को काट काट कर सडक बनाई गयी थी और उसके किनारे हलके-हल्के फव्वारे भी बनें हुए थें।घर की दीवारें पीले रंग के पेंट से पुती हुई थी जिसपर जगह-जगह डिजाइन्स भी बनी हुई थीं । इस शानदार घर में वो अकेला ही रहने वाला था क्योंकि उसके मॉम-डैड को लाइमलाइट में रहना पसंद नहीं था इसीलिए वो लोग गुवाहाटी में रहतें थें। पहले सार्थक भी उनके साथ ही रहता था लेकिन कुछ सालों से जबसे उसने फिल्म इंडस्ट्री जॉइन की तबसे उसे घर लौटने का मौका ही नहीं मिला था । 

सार्थक ने अपनी कार एक बंगले के सामने आकर रोकी जो देखने में ज्यादा बड़ा तो नहीं था लेकिन खूबसूरत बहुत था। उसने मुस्कुराते हुए वो ब्रीफ़केस उठाया और बंगले के अंदर चल दिया।

अरे आ गएँ आप हम तो सुबह से ही आपका वेट कर रहें थें। हम तो ये जानते भी थें कि आपको देर हो जाएगी किसी इवेंट में या शूटिंग में बिजी होंगे लेकिन फिर भी आप हमारे लिए आएं यही बहुत है । आइये अंदर आइये। सार्थक के आगे एक 45 साल के आसपास की महिला चली आ रही थी जो घर के अंदर के रास्ते दिखा रही थी। उसके चेहरे पर फैले उत्साह और खुशी को कोई देख लेता तो कहता कि इसने जरूरी कई सालों की मेहनत के बाद दुनिया की कोई ऊँची चोटी फतह कर ली है। वो दोनों हॉल में पड़े सोफे के पास आ चुके थें। वहीं पास में ही एक अधेड़ आदमी सर झुकाये बैठा था जिसने सार्थक को देखा तो लेकिन उससे एक भी शब्द बोले बिना वापस से फर्श ताकने लगा था। उसकी इस हरकत पर उस औरत को बहुत तेज गुस्सा आयी और उसने आँखों के इशारे से जाहिर भी किया लेकिन फिर भी वो आदमी सार्थक से नहीं बोला।

इनकी थोड़ी तबियत नहीं सही है बेटा, तुम बैठो न ! उसने सार्थक को बैठने का इशारा किया और उसके हाथ से ब्रीफ़केस लेने लगी। लेकिन उसने तुरंत अपने हाथ पीछे खींच लिए और मुस्कुराते हुए उसकी तरफ देखा । पहले तो उस औरत को कुछ समझ नहीं आया लेकिन उसकी मुस्कुराहट का मतलब समझ कर वो भी मुस्कुरा दी।

मंजिल बेटा ! घर में मेहमान आएं हैं तुम्हें पूछ रहें हैं नीचे तो आओ। उसने नीचे से ही आवाज़ दी। पहली आवाज़ पर जब कोई रिस्पांस नहीं मिला तो उसने थोड़ी ऊँची आवाज में उसका नाम पुकारा । मंजी……!

आई मम्मी …! एक दिलकश मीठी सी आवाज आयी ऊपरवाले कमरे के। थोड़ी ही देर बाद दूध जैसे सफ़ेद चेहरे वाली एक 21-22 साल की लड़की घुटने से थोड़ा नीचे आती हुई हलके वाइन कलर की फ्रॉक पहने कमरे से बाहर निकली उसके हाथ में बुक थी जिसे वो उसे ही पढ़ती आ रही थी इसीलिए उसकी नजर अभी तक नीचे खड़े आदमी पर नहीं गई थी। लेकिन जैसे ही उसने पहली सीढ़ी पर पैर रखा और उसकी नजर नीचे गई वो तुरंत वहीं रुक गई। Disgusting. ..! वो गुस्से में पैर पटकती हुई वापस अपने कमरे में चली गयी। सार्थक ने उसकी ओर देखा तो वो थोड़ा असहज हो गयी फिर बोली ,”अभी बच्ची है , फिर ज्यादा जानती भी नहीं आपको, मैं देखती हूँ ।

कोई जरूरत नहीं हैं कुसुम जी, कभी-कभी प्यार से कुछ लोग नहीं मानते है उन्हें गुस्से से ही ठीक किया जा सकता है। 

मतलब…? वहाँ मौजूद दोनों लोगों ने उसे हैरानी से देखा । आप लोग प्लीज कॉपरेट कीजिये। सार्थक अभी भी मुस्कुरा रहा था ।

करना क्या चाहतें हैं आप? चुप बैठा वो आदमी खड़ा हो गया था।

कहाँ न शी… उसने अपने होठों पर ऊँगली रखते हुए उसे चुप रहने का इशारा किया।

 अगली सुबह जब मंजिल की नींद खुली तो वो बुरी तरह चौक गयी। उसके कमरे को किसने इतना सजा दिया , इतनी खुश्बू कैसे फैल गयी रातभर में ही कमरे के अंदर। अरे…ये क्या यहाँ तो उसका एक भी सामान नहीं हैं न फोटोज न उसका Tv , न बुकसेल्फ , उसकी एक भी तस्वीर भी नहीं। उसने चारों तरफ नजर दौड़ाई ये कमरा उसके कमरे से दोगुना बड़ा था इसकी डिजाइन भी उसके कमरे से पूरी तरह अलग था । वो हड़बड़ाहट में बेड से नीचे उतर गयी और अपना सर पकड़ के आसपास देखने लगी। कमरे में दीवार पर एक बड़ा सा शीशा लगा था,एक साइड में कुछ पेंटिंग्स लगी थी जो काफी महंगी लग रहीं थीं, बाहर की तरफ चौड़ी सी बालकनी थी जिससे सूरज कमरे के अंदर ताका-झांकी कर रहा था।उसने अपना सर तेजी से अपने हाथों में दबा लिया। वो तो घर पर थी अपने माँ- पापा के पास तो यहाँ कैसे आ गई?

मैम आप उठ गयी! सर ने आपके लिए कॉफी भेजवाई है। पीछे से एक औरत की आवाज सुनकर वो डरकर पलट गयी। कल्पना उसके पीछे प्लेट में कॉफी लिए खड़ी थी। 

सर..? कौन हो तुम…? और मुझे यहाँ कौन लाया..? मैं कहाँ हूँ? तुम्हारा सर कौन है ? उसने एक ही सांस में सारे सवाल पूछ डाले। 

Good morning my sunshine ! please कॉफी पी लो फिर हम आराम से बैठ के बात करतें हैं । सार्थक को सामने देखकर मंजिल हैरान हुए बिना नहीं रह सकी, उसे डर लगने लगा लेकिन उसका गुस्सा इस अजनबी जगह पर भी कम नहीं हुआ।

कॉफी…? my foot. …! उसने कल्पना के हाथ से वो प्लेट नीचे की तरफ उछाल दी। कल्पना तो उसकी इस हरकत से डर गयी लेकिन सार्थक मुस्कुराता रहा।

कल्पना तुम जाओ , मैं देखता हूँ । कल्पना ने उसकी बात मानते हुए वो टूटी प्लेट और कप उठा लिया और वहाँ से चली गयी। 

To be Continued. .🙏🙏

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