होली से जुड़ी कुछ प्रेम कहानियां

 अभी कुछ दिन पहले ही मेरे एक पाठक ने मुझसे ईमेल द्वारा पूछा कि तुम इतनी प्रेम कहानियां  क्यों लिखते हो, तो मैंने कहा प्रेम ही तो जीवन का आधार हैं,प्रेम ही सभी मुसीबतों का हल है, प्रेम और सौहार्द की भावना की सबसे ज्यादा संसार को जरूरत है। आज कल विश्व में एक अलग ही नजारा देखने को मिल रहा है लोग प्रेम की भाषा ही भूल गए, एक दूसरे से मात्र कुछ भौतिक वस्तुओं के कारण लड़े जा रहे है



“मेरे हिसाब से सबसे बड़ा युद्ध वहीं है जो कभी लड़ा ही न जाय ’’




खैर दोस्तों! कैसे है आप सब उम्मीद है कि बहुत थके हुए,मगर काफी खुश होंगे क्योंकि आखिर होली का त्यौहार जो आ गया है। सारा दिन कामों में ही व्यस्त रहतें होंगे मेरी ही तरह ताकि होली वाले दिन फुर्सत से दोस्तों का , परिजनों का इंतज़ार किया जा सके बिना किसी व्यवधान के। चूंकि मैं जानता हूँ कि आप लोग घर की साफ-सफाई कर कर के काफी थक गए होंगे, हालांकि थक तो मैं भी बहुत गया हूँ, लेकिन आप लोगो की थकान दूर करने के लिए मैं अपनी थकान भूला रहा हूँ और आपको होली से जुड़ी हुई लव स्टोरी के बारे में बताने जा रहा हूँ क्योंकि आपलोग मेरी फैमिली हो और फैमिली का ध्यान रखना मेरा प्रमुख उद्देश्य है।


जैसा की आप सभी जानते होंगे की ब्रज क्षेत्र ( मथुरा ,बरसाना, नंदगांव, वृन्दावन, आदि) में होली का अलग ही रंग देखने को मिलता है। यहाँ की होली सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी काफी चर्चित है । इसका कारण है राधा- कृष्ण की प्रेम कहानी…………

कृष्ण जी पूतना का जहरीला दूध पीने की वजह से श्याम रंग के हो गए थे जबकि राधा रानी शुक्ल वर्ण की एक अद्भुत रचना…….

एक बार उन्हें उदास देख यशोदा ने कारण पूछा तो कान्हा जी बड़ी मासूमियत से बोले “मैय्या राधा इतनी गोरी क्यों है, मेरी जैसी क्यूँ नहीं?” मैय्या हसीं और बोली ” जा आज तू राधा को उस रंग से रंग दे जाके जिस रंग में तू उसे देखना चाहता है।


” कृष्ण ने बिलकुल वैसा ही किया और वो रंग राधा को इतना पसंद आया इतना पसंद आया की वो जिन्दगी भर के लिए कान्हा के प्रेम के रंग में डूब के उन्हीं की हो गई। उन दोनों के प्रेम  का रंग इतना गाढ़ा है कि मथुरा में आज भी होली को राधा -कृष्ण के प्रेम के प्रतिक के रूप में मनाते हैं।


दूसरी कहानी है प्रेम की मारी, विरहाग्नि में जल जाने वाली,प्रेम की जीती जागती मिशाल होलिका की।जिसे हमारे यहाँ होलिका दहन के रूप में जानते हैं, और मानते है कि अपने भाई के कहने पर वो प्रहलाद को लेकर को लेकर अग्निकुंड में प्रवेश कर गई थी। लेकिन इसके पीछेकी कहानी कुछ और ही है जो हिमाचल प्रदेश और उसके आसपास के इलाकों में सम्मानपूर्वक कहीं और सुनी जाती है……


कथा है कि असुर की बहन होलिका पड़ोसी राज्य के राजकुमार इलोजी को बहुत प्रेम करती थी , इलोजी, जो की साक्षात् कामदेव का रूप था, भी होलिका से बहुत प्रेम करता था, दोनों की शादी भी तय हो गई थी लेकिन नियति को तो कुछ और ही मंजूर था…। 


असुर जोकि अपने बेटे के विष्णु भक्त होने से काफी नाराज़ था, ने होलिका से कहा कि वो अपने भतीजे( प्रह्लाद) को लेकर जलती आग में बैठ जाए,क्योकि होलिका को भगवन शिव सेएक ऐसी दुशाला प्राप्त थी जिसे ओढ़ लो वो अग्नि में नहीं जल सकती थी। होलिका ने जब ऐसा करने से मना कर दिया तो असुर ने उसे धमकी दी कि अगर वो ऐसा नहीं करेगी तो वह होलिका की शादी इलोजी से नहीं करेगा। 


बेचारी होलिका जो कि इलोजी को बहुत प्यार करती थी और उसके लिए कुछ भी कर सकती थी,इसीलिए वो प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि पर बैठ जाने को राजी हो गई। असुर के तय किये दिन पर वो अपने भतीजे सहित अग्निकुंड में बैठ गई … 

लेकिन हाय रे विधाता की लेखनी! वो दुशाला होलिका से उड़कर प्रह्लाद के ऊपर आ गई और होलिका वहीं जलकर भस्म हो गई। 


कहते है जिस दिन वो जली उस दिन उसकी शादी थी और इलोजी जब बारात लेकर पंहुचा और उसे सारे घटनाक्रम की जानकारी हुई तो वह पागलों की तरह बिलखने लगा वहाँ लेटकर जहां होलिका जली थी और वो अपना मानसिक संतुलन खोने के बाद इलोजी अपनी सारी जिन्दगी अपनी प्रेमिका होलिका को ही ढूंढता रहा जब तक वो जीवित रहा। 


हिमाचल में ये अमर प्रेम कहानी आज भी श्रद्धापूर्वक सुनी और सुनाई जाती है इन्ही दोनों के प्रेम हेतु ही वहाँ होली मनाने का रिवाज है। इसके आलावा भी कुछ और प्रेम कहानियाँ है जो ज्यादा साक्ष्य के साथ मौजूद तो नहीं हैं लेकिन इतिहास तब भी उनके बारे में कहता हैं जैसे प्राचीन भारत की गुफाओं में बने चित्रों से जिनमें राजकुमारियां अपने सेवकों के साथ मिलकर पड़ोसी राज्य के राजकुमारों को रंग से भिगोती नज़र आती है। मतलब होली वहाँ भी है और प्रेम भी वहाँ मौजूद है।


इसके अलावा लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह भी अपनी 300 बेगमों के साथ होली का उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाते थे। उनके द्वारा मनाई जाने वाली होली सिर्फ प्रेम का प्रतिक नहीं बल्कि सौहार्द का प्रतीक भी थी,क्यूँकि एक बार होली और मुहर्रम एक साथ पड़ने की वजह से हिंदुओ ने होली ना मनाने का फैसला किया ।



 जब ये बात वाजिद अली को पता चली तो उन्होंने कहा कि हिन्दुओ ने होली ना मानकर हमारी भावनाओं का सम्मान किया अब हम होली मानकर उनकी भावनाओं का सम्मान करेंगे। मुहर्रम में मातम की बजाय हम होली की खुशियाँ मनाएंगे।



तो दोस्तों ये थी होली से जुड़ी हुई कुछ छोटी और प्रचलित कहानियाँ , उम्मीद है कि आप लोगो को जरूर पसंद आएँगी। और मुझे ये भी उम्मीद है कि आप भी अपनी होली प्रेम और सौहार्द पूर्वक मनाएंगे। रंगों से सिर्फ तन को ही नहीं मन को भी सराबोर करेंगे। आप सभी के लिए ये होली जिन्दगी के कई बेहतरीन रंग लेकर आए , ये होली आपकी वाकई में एक मुबारक होली हो।

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