A wild heart episode-16

 अभिनव….? हाँ अभिनव ही वो आखिरी लड़का था जिसके साथ वो यूँ अकेले कॉफी पर गई थी वो भी 5 साल पहले। तबसे अगर किसी के साथ कॉफी पर आयी भी हैं तो professionally किसी डील के सिलसिले में। काफी वक्त बाद नंदिनी किसी लड़के के साथ पर्सनल रीज़न से आयी है,शाम की कॉफी साथ पीने।

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                                               नंदिनी जी, अगर आपको यहाँ भी थिंकिंग , बिज़नेस प्लान्स ही बनाने थें तो आपको मुझे यहाँ बुलाना ही नहीं था। ऐसा लग रहा हथा, कि मेरे सामने की सीट पर आप नहीं आपका स्टेच्यू बैठा हैं। काफी सोचने-विचारने के बाद उसने नंदिनी से इतना बोलने की हिम्मत की थी। वेद ने पूरे अदब के साथ उसके नाम में जी लगाया था कि वो बोलेगी,” वेद, ये ऑफिस नहीं हैं यहाँ सिर्फ नाम लेकर भी बुला सकते हो मुझे। “ लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। नंदिनी ने थोड़ा मुस्कुरा कर बात करने की कोशिश की। तो, कैसी रही सिस्टर की शादी? सब अच्छे हो  गया ना? नन्दिनी ने ये सवाल पूछा तो जरूर लेकिन इसे पूछने के बाद वो खुद में ही असहज दिख रही थी।                                            नाराज थी मुझसे, बोली कि पापा होते तो हर पल मेरे साथ होते और आपको तो काम से ही फुर्सत नहीं, ऐसा लगता हैं कि राखी मैंने नहीं आपके काम ने आपको बाँधी हैं। फिर माँ ने और मैंने बड़े जतन करके उसे मनाया। पता हैं आपको पूरा डायमंड सेट गिफ्ट करना पड़ा था उसे मनाने के लिए। मैं तो बोला कि इतने में तो मेरी दस गर्लफ्रेंड मन जाएँगी यार तू तो बहुत महंगी हैं फिर क्या बोली वो आपको पता है कहती हैं कि पहले एक गर्लफ्रेंड ही बना कर दिखाओ मुझे, ऐसे दस सेट्स तो मैं उसे ख़ुशी में ही दे दूंगी। वेद इस तरह झूम के बात कर रहा था कि जैसे उसकी बहन उसके सामने खड़ी हो ये सारी बातें कह रहीं हो। उसकी ख़ुशी का आलम ही दूसरा था ये सब बताते हुए जब तक की उसका ध्यान नंदिनी के उतरे हुए चेहरे की तरफ नहीं गया था। उसे देखते ही अहसास हो गया की ये उसके सवाल का जवाब नहीं हैं तो उसने सीधा जवाब पर आते हुए कहा,” हाँ सब कुछ सही से हो गया था। लव मैरिज थी तो दिक्कत भी क्या खास होती,कोई ज्यादा लोग भी नहीं शामिल हुए थें। इंडिया से तो कोई रिश्तेदार पहुँच ही नहीं पाया था बस एक दो खास-खास। सोच रहा हूँ यहाँ रिसेप्शन करवा दूँ उनके लिए जो वहाँ नहीं पहुँच सके थें, तो जब छोटी इंडिया आएगी तो रिसेप्शन करवाऊंगा। छोटी…..! जाना-पहचाना शब्द लगा नंदिनी को,कोई तो उसे इसी नाम से बुलाता था पर कौन… ओह मैं भूल गई? मेरा भी तो एक बड़ा भाई हैं ! कबसे ये शब्द नहीं सुना था मेरे कानों ने। सैम, वहाँ जैसे ही पहुँचाना तो कॉल कर देना। और कल ऑफिस का पहला दिन हैं तो ज़रा ध्यान से अच्छे से बनकर जाना ऑफिस। नंदिनी काफी खुश लग रही थी अपने भाई को विदेश भेजते हुए। हूँ जरूर करूँगा, और तुम भी डैडी का अच्छे से ख्याल रखना और अपनी पढ़ाई पर फोकस करना 12वीं में हो अबकी। सारा ध्यान पढ़ाई पर ही समझी बेवजह से बिज़नेस आर्टिकल्स, मैगजीन्स या शेयर मार्किट की दर ना देखना ना ही टीवी पर कोई इकोनॉमिकल न्यूज़ खोल के बैठ जाना। तुम्हारे एग्जाम्स तक के लिए मैंने न्यूज़ पेपर बंद करवा दिया हैं और याद रखना अगर क्लास में अबकि बार तुम्हारी बैग से कोई बिज़नेस मैगजीन निकली तो मैं नहीं आऊँगा तुम्हें बचाने और ना डैडी को आने दूँगा। छोटी अब समय आ गया हैं कि तुम पढ़ाई से जुड़े हुए आर्टिकल्स काट कर दिवार पर चिपकाओ ना कि कोई बिज़नेस आईडिया पेपर से गोल कर दो क्योंकि ये फील्ड आपके लिए बहुत मुश्किल हैं। मुझे तुम पर तो पूरा भरोसा हैं लेकिन ये जो बाज़ार हैं इसकी मैं सच्चाई जानता हूँ औरतों को आगे बढ़ने नहीं देता। अब चलता हूँ मेरी फ्लाइट का टाइम हो रहा हैं। डैडी का ध्यान रखना और अपना भी छोटी, जाते हुए समीर ने नंदिनी का माथा चूमते हुए कहा था। तब ही शायद वो आखिरी बार था जब किसी ने इतने प्यार से छोटी बोला था। उसके बाद तो फोन क्या था बीच में बस तल्खियां ही थी। कभी तिवारी जी शिकायत करते थें कि मैंने तो पेपर पढ़ा भी नहीं वो पेपर से कुछ काट के पहले ही ले गई,तो कभी स्कूल से कोई शिकायत आ जाती।   

                                   समीर उसे समझाने की कोशिश करता तो बहस हो जाती। उसपर से जब से नंदिनी को किसी से ये पता चला था कि समीर किसी क्रिश्चियन लड़की रोज़ के साथ रिलेशनशिप में हैं तब से वो और उखड़ गई थी, क्योंकि रोज़ के पहले भी कई चक्कर थे।उससे मिलने के बाद समीर डैडी की दवाई के पैसे भी कम भेजने लगा था।                         

   मैम…! आप सच में मेरे साथ यहाँ नहीं हैं ना? वेद ने हाथ से टेबल बजाते हुए कहा।                                                    नहीं तो, ऐसा कुछ नहीं है मैं तो यही हूँ आपके साथ , नंदिनी ने पानी का ग्लास उठाकर दो घूंट पानी गले के नीचे उतारा।    
आप कह रहीं थीं कि आपको मुझसे कुछ बात करनी हैं..?  
   हाँ दरअसल मैं… मुझे पता ही नहीं था कि आपकी कोई बहन भी हैं और उसकी शादी भी हैं…अगर मुझे ये पता होता तो क्यों रोकती…..एक तो लीव एप्लीकेशन भी अधूरी थी आपकी… तो…. नंदिनी की आवाज में हड़बड़ी झलक रही थी।           
 क्या कहा…लीव एप्लीकेशन अधूरी थी ? दरअसल आप को कारण जानना ही नहीं था कि मुझे छुट्टी चाहिए ही क्यों,मैंने कितनी कोशिश की थी लेकिन आपने मेरी बात नहीं सुनी, जानती हैं क्यों? क्योंकि आपको डर था कि वेद कहीं दूसरी कम्पनी के लिए ट्राई ना करें, उसे कोई और ना हायर ना कर ले, हैं ना नंदिनी जी…..।                                        नहीं ऐसा कुछ नहीं हैं मुझे ट्रस्ट था आप पर लेकिन जैसा कि आप देख रहें थें कि कंपनी में तब काफी ज्यादा वर्कलोड….. जानता हूँ आपको बात काटने वाले लोग पसंद नहीं हैं लेकिन मैं मानता हूँ कि कभी भी अपनी गलती के लिए माफ़ी मांगने में शर्मिंदगी नहीं महसूस करनी चाहिए और ना ही सच को छिपाने के लिए बहाने बनाने चाहिए क्योंकि सच को आप लाख झूठ के दरवाजों में छुपा दो ना तब भी वो सामने आ ही जाता हैं ये सच की फितरत होती हैं जैसे कुछ लोगों को माफ़ी ना मांगने की फितरत होती हैं।                            
  हाँ थोड़ा डर था लेकिन ज्यादा टेन्शन नहीं थी क्योंकि आप कहीं चलें जाते तो कोई दूसरा आ जाता आपकी जगह पर मेरी कंपनी बंद थोड़ी हो जाती। नंदिनी ने बेफिक्री से कहा।           
वेद धीरे से मुस्कुराया और बोला,” जानती हैं, जब कभी कोई इंसान आपके लिए जरुरी हो तो उसे बताना चाहिए और खुद को भी की वो आपके लिए जरुरी हैं वरना एक दिन ऐसा होता हैं कि दुनिया आपके पास होती हैं लेकिन कोई अपना कोई बहुत खास आपके पास नहीं होता। उस दिन हमें लगता हैं कि “यार कोई मुझे प्यार ही नहीं करता,मैं तो बिलकुल अकेला हूँ।” जबकि हकीकत ये होती हैं कि जो आपसे प्यार करतें थें उन्हें आप खुद पीछे छोड़ आए हो। और दूसरी बात तो ये भी कि जब सब मेरी काबिलियत जानते हैं तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि जिस sunrise industry में मैं पिछले 7 महीने से बतौर CFO काम कर रहा हूँ वहाँ कि फाउंडर और CEO मेरी काबिलियत से वाकिफ ही ना हो ! वेद की आँखों में जो सवाल था उसका नंदिनी के पास कोई जवाब नहीं था इसीलिए वो वेद की तरफ ना देख कर इधर-उधर देख रही थी,और कोई इंसान किसी से आँखे कब नहीं मिलता ये तो आप जानते ही होंगे। वेद और ज्यादा चर्चा नहीं करना चाह रहा था क्योंकि चर्चा या बहस करें भी तो किससे यहाँ वो अकेला कहने वाला था और अकेला सुनने वाला भी शायद। 

बहुत कुछ भरा था वेद के अंदर वो चिल्ला कर नंदिनी से पूछना चाह रहा था कि क्यों जब उसने इतना यकीन दिलाया खुद पर तब भी उसे ऐतबार क्यों नहीं आ रहा? और जब यकीन कर ही नहीं पाना हैं तो क्यों जॉब पर रखा है रोज़-रोज शक करने के लिए? गलती तुम्हारी उसपर से बात भी तुम्हारी ही चलेगी? ज़रा सा माफ़ी मांगनी तो आती नहीं बस दुसरों का दिल दुखाना आता हैं। वेद ने अपना कोट संभाला और जाने के लिए खड़ा हो गया,उसके खड़े होते ही एक वेटर टेबल के पास आ कर खड़ा हो गया। वेद ने अपनी वॉलेट से पैसे निकाले और वेटर की कि प्लेट की तरफ बढ़ा दिए लेकिन जैसे ही उसने प्लेट से टीसू पेपर हटाया तो उसमें बिल नहीं बल्कि रोनी इमोजी के साथ एक नोट रखा था।वेद ने वो नोट उठाकर पलटा तो उसपर सॉरी लिखा हुआ था।   

      वेटर तो चला गया वहाँ से लेकिन वेद खड़ा सोच रहा कि अब क्या करें वो,जाए ? की फिर से बैठ जाए? नोट पर छपी वो इमोजी और लिखा हुआ सॉरी तो उसे रोक रहें थें लेकिन अंदर जो गुस्सा जैसा कुछ था वो चलने को कह रहा था। लेकिन क्या ये नोट पढ़ने के बाद गुस्सा पहले के जितना मजबूत भी था। वैसे तो नोट में कुछ खास नहीं था सिवाय नंदिनी की writting के। उसने नन्दिनी को देखा जो अभी भी उसकी तरफ नहीं देख रही थी पहले वेद को लग रहा था कि उन आँखों में ऐटिट्यूड हैं अभी वेद को लग रहा हैं कि उन आँखों में पानी हैं, कोई मामूली पानी नहीं बल्कि अथाह दुःख को अपने अंदर समेट कर रखे हुए आंसुओ का पानी।  

                        To be continued……..

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