A wild heart part -17

 जैसे लोहे से चुम्बक चिपक जाता हैं वैसे ही वेद के पैर भी ज़मीन से चिपक गए थे नोट पढ़ने के बाद। थोड़ी देर तो खड़े होकर वो कुछ सोचता रहा फिर वापस सीट पर बैठ गया।    

 गयें नहीं ?

 अबकी नंदिनी उसकी तरफ देख के कहा था।                    रात के 10 बजने वालें हैं और आपकी सिक्योरिटी भी नहीं हैं तो साथ ही चलते हैं। वेद मुझे किसी के साथ चलना पसंद नहीं,मैं सबसे आगे चलना ज्यादा पसंद करती हूँ।                       शायद आपकी यही कमी हैं कि किसी का साथ आपको पसंद नहीं इसीलिए शायद आप अकेली हैं,क्योंकि आपके अपने उतनी तेजी से आपके साथ नहीं चल पाएं और वो पीछे रह गए। वेद के लहजे में सलाहियत मिल गई।                             

 मिस्टर वेद, प्लीज! जिन चीजों को आप जानतें नहीं हैं तो उनके बारे में कमेंट भी ना किजिये ना। नंदिनी की बोली में खीझ उभर आयी ।
                                                                      चलिए माना की नहीं जानता हूँ मैं कुछ भी आपके बारे में लेकिन क्या आप दावे से कह सकती हैं कि आप सब जानती हैं अपने बारे में?                                                            आपने लिखा था कि आपके पापा नहीं हैं तो कैसे? क्या?हुआ था उन्हें? कैसे मैनेज कर रहें हैं आप सारी चीजें? नंदिनी के अंदर बहुत गुस्सा भर आया था।दिल तो चाह रहा था कि टेबल पर हाथ पटक के पूछें, “तुम हो कौन मिस्टर मेरी जिन्दगी के बारे में ऐसे सवाल करने वाले? हैसियत हैं तुम्हारी मुझ पे यूँ अधिकार दिखा कर बात करने की? ज़रा सी ऊँगली क्या पकड़ाई अब हाथ भी पकड़ना हो गया आपको? लेकिन उसने गुस्से को अपने अंदर ही घोल लिया,क्योंकि वो जानती हैं कि शायद यहाँ अपनी गलती का सुधार करने आयी हैं दोबारा से कोई गलती करने नहीं।इसीलिए उसने बात बदल दी क्योंकि वो जानती हैं कि इसी किस्म की बातें अगर चलती रहीं तो अभी उठ के वो वेद का सर फोड़ देगी।

6 साल पहले ब्रेन हैमरेज की वजह से वो इस दुनिया को छोड़ कर चलें गए थें।तब से मैं ही मैनेज कर रहा हूँ अपनी फैमिली। एक बहन हैं और माँ हैं बस इतना छोटा सा परिवार हैं, अब तो छोटी की शादी हो गई है तो सोच रहा हूँ कि माँ को भी इंडिया ले आऊं अपने साथ….                                                    

  एक मिनट आपकी फैमिली इंडिया में नहीं रहती हैं क्या….? नंदिनी को थोड़ी हैरानी हुई।                                       दरअसल पहले मैं भी इंडिया में नहीं रहता था लेकिन जब यहाँ जॉब मिली तो चला आया। मेरी हायर स्टडीज के लिए मॉम डैड अमेरिका शिफ्ट हो गए थे तो वहीं से पढ़ाई वहीं से जॉब फिर लाइफ ने यू-टर्न लिया और मैं फिर से इंडिया आ गया। नंदिनी को मौका मिल गया इतने लंबे वक़्त से खुद में दबाये हुए सवाल को पूछने का। सुना है,क्लिंटास में आप को बहुत आराम था, खूब पैसा भी कमा रहे थें आप तो ऐसा क्या हुआ कि आपने वो कम्पनी छोड़ के हमारी कम्पनी को चुना जबकि हमारी कंपनी उसके मुकाबले तक अभी पहुँच नहीं पायी हैं।                                                                      नंदिनी जी हर चीज़ पैसा ही नहीं होती, प्यार भी तो कुछ होता हैं। वेद ने धीमे से मुस्कुराते हुए कहा। नंदिनी का गुस्सा हैरानी में बदल रहा था। मैं समझी नहीं । वो बोली।

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 मैं यहाँ अपनी childhood crush को सपोर्ट करने आया था जब सुना कि वो बहुत दिक्कतों में हैं तो सोचा चलो साथ देते हैं उसका।                                          ओह इंट्रेस्टिंग! अभी उसकी दिक्कतें अगर कम हो जाएँगी तो आप वापस अमेरिका चलें जाएँगे?                           कुछ कह नहीं सकता जा भी सकता हूँ नहीं भी। अगर उसने रोका तो नहीं जाऊंगा और नहीं रोका तो चला जाऊंगा।     

 रोकेगी क्यों नहीं अगर आपको प्यार करती होगी तो जरूर रोकेगी। फिर आपने उसके मुश्किल वक़्त में उसका साथ दिया तो उसे रोकना तो चाहिए ही।   

                                  दरअसल ये दोनों बातें नहीं हैं शायद वो मुझसे प्यार नहीं करती और उसे पता भी नहीं है कि मैं प्यार करता हूँ उससे या उसके लिए इंडिया आया हूँ। इनफैक्ट उसने तो मुझे पहचाना ही नहीं जब उसके सामने पंहुचा मैं…. शायद उसके संघर्षों ने उसे दिमागी तौर पर इतना थका दिया है कि वो लाइफ के इजी मोमेंट भूल ही चुकी हैं। मगर मुझे हर लम्हा याद है उससे जुड़ा हुआ चाहे साइकल पंचर करने पर 3 लड़कों को मारने का किस्सा हो या फुटबॉल टीम में सेलेक्शन के लिए प्रिंसिपल ऑफिस में धरने पर बैठने का, उससे जुड़ा हर खास किस्सा मुझे आज भी याद है। ये कहते हुए वेद नंदिनी के चेहरे को बड़े गौर से देख रहा था लेकिन उसके चेहरे पर सिवाय हैरानी के कोई दूसरा भाव ही नहीं आया।                                                         बहुत ही स्ट्रिक्ट लड़की से प्यार कर लिया आपने इसके लिए मुझे सॉरी फील हो रहा है आपके लिए। आप एक काम क्यों नहीं करते एक बार उससे अपने दिल की बात कह कर तो देखें शायद वो मान जाए फिर आप दोनों अमेरिका में सेटल हो जाना। वहाँ इतना तो आपने सेविंग करके रखा ही होगा कि दोनों की जिन्दगी आराम से बीत सके! नंदिनी की बात में सलाह के साथ सवाल भी था। वेद मुस्कुराया और बोला,”मैम अगर आप सोच रही हैं कि मेरे कहने भर से वो मान जाएगी तो बता दूँ आप गलत सोच रही हैं बाकी ऊपरवाले कि दुआ और मेरी मेहनत से वहाँ मेरे दो बँगले और इतनी सेविंग्स है कि मैं खुद की कंपनी भी खोल सकता हूँ। I think हज़ार करोड़ किसी भी स्टार्टअप के लिए काफी हैं! वो नंदिनी को अपना स्टेटस नहीं बताना चाह रहा था लेकिन उसे लगा कि नंदिनी उसे Underestimate करने की कोशिश कर रही है।       

                                                          wow! नंदिनी के इस नन्हे शब्द में हैरानी थी दो बातों की कि कोई किसी से इतना प्यार कैसे कर सकता है कि उसके लिए इतनी बड़ी जॉब इतना रूपए पैसे छोड़ के आ जाए दूसरा की उसकी कंपनी ही क्यों? “तुम तो बिलेनियर हो फिर बिना जॉब किये भी तो उसकी मदद कर सकते थे?”                                                                        आप इतने सवाल पूछ रही हैं और मैं हर सवाल का जवाब दे रहा हूँ लेकिन मैं जब आप से सवाल पूछता हूँ तो आपके अंदर इतना गुस्सा भर जाता है कि आप का बस चलें तो मेरा सर ही तोड़ दे। उसने हलके से मजाक में नंदिनी के अंदर की दशा का इतनी खूबसूरती से वर्णन किया था कि वो उसे ताकती ही रह गई। 

ये कैसे हो सकता है कोई उसे इतने अंदर तक जानता हो? क्या वेद को दिमाग पढ़ना आता हैं?                              इतनी सोच में मत गुम होइए मैम, मुझे कोई दिमाग नहीं पढ़ना आता बस सामने वाले के चेहरे देख के उनके अंदर का हाल पता लगाना आता है थोड़ा बहुत। ये बात सुनके कोई भी झटका खायेगा तो जाहिर है नंदिनी का अवाक रह जाना कुछ खास नहीं था। उसने रुमाल उठाकर अपना चेहरा पोछा जबकि रेस्टोरेंट के बाहर हलकी गुलाबी सर्दी सड़को पर हवा बनके बह रही थी धीमे-धीमे। वेद ने माहौल की ठंडक को भांप लिया था शायद उसने ये कह के नंदिनी की परेशानियों में कोई इजाफा किया हैं। वैसे… मैं सिर्फ मजाक में बोल रहा था और आप ऐसे रियेक्ट कर रही हैं कि आप सच में ऐसा ही सोच रही हो…! उसने थोड़ी देर इंतजार किया लेकिन कोई जवाब नहीं मिला नंदिनी आँखे बचाते हुए सड़क पर दौड़ रही गाड़ियों को देख रही थी। आपको पता हैं मैं बस यहाँ आपसे एक ही बात करने आया था वो ये कि प्लीज आप overthinking करना बंद कर दें वरना पता नहीं किस किस से आपको यूँ ही माफ़ी मांगनी पड़े। नंदिनी ने पैनी नजरों से वेद को देखा। यहाँ मैं आपका एम्प्लॉई नहीं हूँ और खुद को एक दोस्त समझते हुए मैं बस इतना ही कहना चाहुंगा कि आपने अपने इतने रिश्ते खोए हैं उसमें कहीं ना कहीं आपकी इस ओवरथिंकिंग का भी हाथ हैं। जब मैंने आपसे लीव के लिए बोला था तो ऐसी कोई बात भी नहीं थी लेकिन आपने सोच सोच के बात इतनी बढ़ा दी कि अब खुद आपको गिल्टी फील हो रहा है इसीलिए……                 
सॉरी सर,सॉरी मैम! पर रेस्टोरेंट की closing का time हो रहा है तो क्या आप लोग….. मैनेजर के इतना कहते ही वेद और नंदिनी दोनों ने एक साथ अपनी-अपनी घड़ी पर निगाह दौड़ाई रात के 12 बजने वाले थें।                                                 हाँ हम भी बस निकल ही रहें हैं। वेद ने कहा।       

            नंदिनी ने बिल निकाल के मेन्यु कार्ड में रख दिया और बाहर चली गई वेद उठा और कार्ड से नंदिनी के आधे पैसे अपने पास रखे और आधे अपनी तरफ से उस प्लेट में रखते हुए वेटर के हाथ में कुछ पैसे रख के बाहर आ गया।                             

  आप बिल पे कर सकती हैं इससे मुझे ख़ुशी है पर मैं भी बिल पे कर सकता हूँ इससे आपको कोई दुःख नहीं होना चाहिए। इतना कहकर वेद ने नंदिनी की तरफ वो पैसे बढ़ा दिए जो अभी टेबल से उठाए थे नंदिनी ने बिना कुछ कहते हुए पैसे लेकर अपनी पर्स में रख लिए।                                        
    मैं सोच रहा था कि रात काफी हो चुकी हैं अब आपको घर जाना चाहिए वैसे भी अब ज्यादा देर यहाँ रहीं मेरे साथ तो सुबह अखबारों की सुर्खियों में छा जाएँगी और अभिनव को आप पर ऊँगली उठाने का मौका मिल जाएगा। इसीलिए आप चली जाईये मैं आपसे थोड़ी देर बाद कैब से निकल जाऊंगा।                                                             
 तो आप कैब से चले जाइये मैं अभी थोड़ा घूम के जाउंगी आसपास, मुझे यहाँ अच्छा लग रहा हैं।                             बात अच्छा लगने की नहीं है रात में महानगरों की सड़के किसी भी लड़की के लिए अच्छा महसूस नहीं करती चाहे लड़की उनके लिए कितना भी अच्छा महसूस करें। वेद ने सलाह के लहज़े में कहा।                                                मुझे नहीं फर्क पड़ता कोई मेरे लिए अच्छा महसूस करें या ना करें लेकिन मुझे जो अच्छा लगता है वो मैं जरूर करती हूँ, आप का मन हो तो जाइये ना मन हो तो जबरदस्ती नहीं कर रही मैं आप से और यही उम्मीद आपसे भी रखती हूँ। इतना कहकर वो वेद की तरफ पीठ करके नंगी सड़को पर आगे बढ़ गई हवा को चीरती हुई। सडको के किनारे लगे हुए गुलमोहर कि खुशबू दिमाग की सारी नशों को सुकून पहुँचा रही थी और पेड़ो के नीचे से गुजरने पर हलकी-हलकी ओस जब छन के बदन पर गिर रही थी तो बदन से ज्यादा रूह भीग रही थी नंदिनी की। वो आगे बढ़ती जा रही थी तभी ज़रा सी आहट हुई तो नंदिनी के दिल की धड़कन बढ़ गई उसने चारों तरफ देखा तो कोई नज़र नहीं आया। फिर भी डर बन गया उसके दिल में और बड़े ध्यान से वो हर चीज़ देखने लगी थी क्योंकि भले ही कितनी बहादुर ही सही पर थी तो एक लड़की ही, भले ही 16 की नहीं 26 की लेकिन थी तो एक लड़की ही। तभी एकदम से उसके सामने से पेड़ो के झुंड से एक छोटा जानवर भाग के सड़क के दूसरी तरफ गया उसके निकलते ही नंदिनी डर गई थी लेकिन जब उसे देखा तो मन ही में बोली,”ओह कोई जंगली जानवर हैं जंगली बिल्ली या सियार और राहत की साँस ली।” हमारे यहाँ लड़कों के लिए इससे ज्यादा क्या ही बुरा हो सकता है कि रात में घर से बाहर निकली लड़की जानवरों से नहीं उनसे डरती हैं। चलते-चलते नंदिनी बहुत थक गई तो एक बेंच पर आराम से बैठ गई। उसे लग रहा था कि जिन विचारों से वो यहाँ भाग के आयी थी वो भी उसके पीछे-पीछे भाग आएं हैं।वेद की बातें,अभिनव की चालें, ऑफिस के काम, शेयर मार्किट में उसके प्रतिद्वंदियों की साजिशें सब उसके साथ ही उसकी बेंच पर बैठ गएँ हो। नंदिनी ने उन सब से बचने के लिए अपनी इयरफोन निकाल के गाने बजा लिये।

सुबह हलके अँधेरे में 5 बजे के आसपास जब उसकी आँख खुली तो उसने बेंच पर एक सर को सोता हुआ पाया जिसका बदन ज़मीन पर बैठा हुआ कांप रहा था। उसने गौर से देखा तो वो वेद था वो उठ कर बैठी तो उसे अपने बदन पर वेद का कोट दिखा शायद उसे बहुत ज्यादा ठण्ड लग रही होगी। वो हैरान सी वेद को देख रही थी शायद आज वेद उसे हैरान करने ही आया था। उसने कोट उठाकर वेद की पीठ पर डाला जैसे ही उसने वेद को हाथ लगाया वो तुरंत उठ गया।                                                                      

   सुबह हो रही है आपको तुरंत निकलना चाहिए इससे पहले कोई आपको मेरे साथ देख ले मैंने आपकी कार रेस्टोरेंट के पीछे खड़ी कर दी है और उसकी चाभी ये रही। वेद ने नंदिनी को कुछ भी कहने का मौका ना देते हुए चाभी थमाते हुए बोला।जल्दी करिए कि इससे पहले उजाला हो जाए।                               

मैंने आपसे कहा था कि आप चलें जाए तो गए क्यों नहीं?    क्या है ना कि हमारे यहाँ हमें ये नहीं सिखाया गया कि परेशान लड़की को अकेला छोड़ के खुद घर पर सो जाओ।

नंदिनी ने कार तो स्टार्ट कर दी लेकिन उसकी निगाहें वेद के चेहरे पर थमी रही जो पेड़ की आड़ में खड़ा हो उसे बाय बोल रहा था ताकि कोई उसे देख ना ले वरना नंदिनी के बारे में अखबारों में उलटी सीधी खबरें छपने में ज्यादा टाइम नहीं लगता।

            To be continued…….

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