A wild heart-25

 घड़ी ने ‘टन’ से सात बजे का इशारा किया तो वेद की नीचे गिरती हुई गर्दन सजग हो कर पूर्ण सीधी हो गई और नींद और थकावट से भरी लाल आँखें भी ज्यादा देर बंद नहीं रह पायी। उसने एक बार घड़ी से आँखें मिलायी और दूसरी ही नज़र उस कटोरी पर डाली जिसमें रखा तेल ठंडा हो चुका था।वेद ने नंदिनी के पैरों को अपनी गोद से हटाकर बिस्तर में छिपा दिया और तेल की कटोरी लेकर किचन की तरफ चल दिया तेल तीसरी बार गर्म करने। वेद जब से नंदिनी को लेकर आया हैं तब से उसे होश में लाने के सारे प्रयास कर रहा हैं इसीलिए गर्म तेल से उसके तलवों की मालिश भी कर रहा हैं कि शायद इससे जल्दी होश आ जाए। उसे पता था कि इतनी सुबह सुबह रूपा बुआ यहाँ नहीं होंगी लेकिन वो फिर भी तनु को अपने साथ नहीं लाया। वो चाह तो रहा था कि नंदिनी का ध्यान रखने के लिए वो तनु को साथ ले आए लेकिन वो जानता था कि उसमें इतनी हिम्मत नहीं है कि उन दोनों को ही संभाल पाएं।फिर उसे डर भी था कि होश आने पर अगर उसने तनु को देखा तो उसपे गुस्सा ना करने लगे। किचन में तेल गर्म करते-करते वेद किचन की हर चीज़ को देख रहा था शायद किसी भी चीज़ पे वो रूपा के अलावा किसी दूसरी स्त्री के स्पर्श का निशान देख रहा था,लेकिन उसे ऐसा कोई भी ड्रॉर, कोई भी बर्तन या कोई भी जार नहीं मिला जिस पर किसी दूसरी औरत के उंगलियों के निशान हो। पूरे किचन में एक नाटे कद की,बूढ़ी, गठिया की बीमारी का शिकार औरत के मटमैले शरीर की ही खुश्बू थी कहीं भी कोई युवा इत्रदार जिस्म की महक नहीं महसूस हुई उसे। वो अपनी इस बेवकूफियत पर थोड़ा सा मुस्कुराया,वो भी क्या कर रहा हैं?यहाँ आती ही कब हैं वो जब नशा करना होता है उसे वरना तो फॉर्महाउस,कोई होटल या दिल्ली रोड वाला बंगला। लेकिन समझ नहीं आता जब ये आलिशान मकान उसे इतना चुभता है तो बेच क्यों नहीं देती इसे?शायद पापा के सामने लिया था इसलिए? उफ…यादों को सम्भालने का शौक है और रिश्ते सम्भालने का शऊर नहीं लड़की में। वेद ने दिमाग को झटका दिया और गैस को ऑफ करके गर्म तेल नंदिनी के पास लेकर चला गया।

इतना सब करने के बाद भी नंदिनी होश में नहीं आयी थी,आँखे बंद किये उसी तरह लेटी रही जिस तरह वेद ने उसे लिटाया था एक इन्च भी शरीर इधर से उधर नहीं किया था।वेद ने सोचा था कि अगर इसे जल्दी होश आ जाएगा तो मैं ऑफिस चला जाऊंगा लेकिन 8 बज चुका है पर वो उसी तरह बेदम और बेसुध पड़ी हुई है। वेद ने तेल को साइड में रखकर कमरे में टहलना शुरू कर दिया था कभी कमरे के पर्दों को हाथों से छूता तो कभी वाश में रखे फूलों को सहलाता, उसने कमरे की दीवारों पर अपनी नजरें दौड़ाई तो बस तीन ही फोटो टंगी थी नंदिनी की।एक फोटो में वो अपने डैड के साथ बैठकर कॉफी पीती दिख रही हैं, दूसरी फोटो किसी ऑर्फनेज़ की है जिसमें वो बच्चों के साथ पेटिंग कर रही हैं और तीसरी पेंटिंग में रेड ड्रेस में हाथ में रेड वाइन लिए दिख रही है। 

कमाल हैं समीर के साथ उसकी एक भी फोटो नहीं हैं!शराब के साथ फोटो सहेजी जा सकती हैं लेकिन भाई के साथ नहीं……?इतनी नफ़रत कैसे कर सकती है वो अपने भाई से? वेद यही सोचते हुए हैरान हो गया उसे दुःख हुआ नंदिनी के लिए।इससे पहले की वो इस सोच में गहराई से डूब जाता उसकी नज़र टेबल पर फ्रेम करके रखी हुई छोटी सी तस्वीर पे गई। उसका पूरा चेहरा ख़ुशी से गुलाबी हो उठा “अरे मैं तो इस लड़की को जानता हूँ…” वेद ने झट से वो तस्वीर अपने हाथों में उठा ली जिसमें एक 14-15 साल की लड़की फुटबॉल को अपनी गोद में रख के मुस्कुरा रही हैं। वो उस तस्वीर को देखते-देखते नंदिनी के बेड के पास पहुँच गया और स्टूल खींच के उसके चेहरे और तस्वीर वाली लड़की के चेहरे का मिलान करने लगा। वेद के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ गई थी पता नहीं कि एक 15 साल की लड़की की तस्वीर से या 28 साल की शांत लेटी लड़की के चेहरे को देखकर। वेद काफी देर तक नंदिनी को इतना खो कर देखता रहा कि उसे पता ही नहीं चला की उसके हाथ से वो तस्वीर कब छूट के बिस्तर पर गिर गई,आवाज़ ना होने से उसका ध्यान टूटा ही नहीं और वो वैसे ही नंदिनी के चेहरे को निहारता रहा ।

मासूम सा,प्यारा चेहरा जिसपर उलझें बालों की कुछ लटें बिखरी पड़ी थीं थोड़ी-थोड़ी थकावट थी लेकिन वो भी सुकुमार चेहरे की खूबसूरती ही बढ़ा रही थी। पता नहीं क्या हुआ वेद को, अचानक ही उसका दिल बहुत जोरों से धडकने लगा और उसका मन हुआ की वो उसके चेहरे के बालों को संवार दे , उस की पलकें चूम ले फिर उसका माथा फिर उसके गाल और फिर उसके…., वो नंदिनी के चेहरे पर झुक गया अपने हाथों की उँगलियों से उसने उन बालों को कानों के पीछे सटा दिया और बेहद नजदीकी से उसकी साँसे महसूस करने की कोशिश करने लगा वेद की आँखे लगभग बंद हो चुकी थी वो खुद पर से पूरा नियंत्रण खो चुका था।फोन की घंटी बजते ही वेद की आँखें खुली तो एकदम से झटक के खुद को दूर किया , उसका दिल इतनी तेज से धड़का की लगा सीने के बाहर ही आ जाएगा,इतनी ठण्ड में उसे माथे से पसीने की बूंदे चूने लगी। ओह गॉड…!क्या करने जा रहा था मैं..? वेद ने अपने दोनों हाथों से अपने सर को दबाते हुए पछतावा जाहिर किया। उसे लगा की उसे साँस नहीं आ रही तो वो किचन की तरफ पानी पीने के लिए भागा। उसने पानी पीकर ग्लास रखा ही था कि फोन की घंटी फिर बजी। उसने आकर फोन पिक किया।                                                         

  तनु तुम ठीक तो हो ना कोई बात तो नहीं हो गई…?      नहीं सर मैं ठीक हूँ ऑफिस आ गई हूँ,मैम की तबियत पूछनी थी कैसी हैं अभी वो….?                                                        
 ऑफिस?तुम्हें घर पर आराम करना था,रातभर तो जगी हो तुम।मैं ठीक हूँ सर इतना काफी था मेरे ऑफिस आने के लिए..मगर मैम… उनके बारे में बताएं आप मुझे।                            
   पता नहीं वो ठीक है कि नहीं जगी नहीं है अब तक । एक काम करो तुम यहाँ आ जाओ इनके पास और मैं ऑफिस आ जाता हूँ क्योंकि किसी एक का वहाँ भी होना जरुरी है।                     
 हाँ कि फ़िक्र ना करें मैं हूँ यहाँ आप उन्हें ही देखिये क्योंकि आप उन्हें मुझसे बेहतर संभाल सकते हैं ।                                     
  ठीक है लेकिन तनु याद हैं ना तुम्हें…..                           हाँ आप डरें नहीं मैं कल के बारे में किसी से कोई बात नहीं करुँगी। इतना कह के उसने फोन काट दिया , वेद को लगा तनु ने फोन नहीं काटा बल्कि उसके साथ अपने सम्बन्धों का विच्छेद करने की कोशिश की हो।   

कुछ टूट के गिरने की आवाज आने पर वेद ने पलट के देखा तो सहमी हुए नंदिनी बिस्तर पर चादर में लिपटी हुई बैठी दिखी। कांपते हाथों से पानी पीने की कोशिश में उसने कांच का ग्लास फर्श पर गिरा दिया था । सहमा हुआ चेहरा , आँखों में डर और आंसू, बेतरतीब सांसें कोई उसे देख के कह ही नहीं सकता कि ये बिज़नेस इंडस्ट्री की क्वीन हो सकती है और इनकी कंपनी देश की टॉप-7 कम्पनी में आती है । वेद ने उसे देखा तो ना जाने उसका जी कैसा-कैसा हो आया अंदर से कुछ टूट गया उसके। धीमे-धीमे कदमों से वो नंदिनी के बिस्तर के पास आ गया । उसका दिल था कि वो आहिस्ते से नंदिनी के सर पर हाथ फेर दे,उसकी आँखों से आंसू पोछ कर उसकी पीठ को सहलाते हुए उसे अहसास दिलाये कि “सब अच्छा होगा।” लेकिन वो अपनी भावनाओं को काबू रखते हुए चुपचाप उसके लिए ग्लास में पानी निकालने लगा क्योंकि वो अभी बस यही कर सकता था, दिलासे देना,समझाना…….ये सब….ये सब हक़ की माँग करते थें और वेद के पास….!!!वेद ने जैसे ही ग्लास नंदिनी की तरफ किया वो सिसकती हुई उससे लिपट गई वेद ने बड़ी मुश्किल से पानी के ग्लास को संभाला था वरना वो उसके हाथ से बस छूटने ही वाला था। नंदिनी का यूँ लिपटना उसे बता गया कि अपनापन दिखाने के लिए किसी हक़ की जरुरत नहीं होती है और वेद ने उसके सर पर स्नेह भरा हाथ रख दिया।


  
नंदिनी की सिसकियाँ एकदम से और तेज फूट पड़ी। जैसे रोते हुए को जब रोने से मना किया जाता हैं तो वो और अधिक रोता हैं वैसे ही वेद की मूक भाषा के दिलासे के फलस्वरुप नंदिनी ने उसकी प्रतिक्रिया दी।                                                    

कुछ नहीं हुआ हैं नंदिनी सब ठीक होगा खुद पर भरोसा रखना होगा तुम्हें।ऐसे रोने से काम नहीं चलने वाला खुद को सम्भालो।नंदिनी ने कोई जवाब नहीं दिया वैसे ही रोती रही उसकी कमर के दोनों तरफ से अपने हाथों को कसे हुए।                     
 तुम्हारा रोना सिर्फ तुम्हारा रोना नहीं है बल्कि हर उस लड़की का रोना साबित होगा जिसकी आँखों में बिज़नेस के लिए सपने हैं जो खुद का मुकाम बनाना चाहती है जो चाहती हैं कि बिज़नेस में उनका नाम……                                        
  नहीं….नहीं…ऐसा कभी नहीं होना चाहिए….नंदिनी ने वेद से दूर हटते हुए कहा,”बिज़नेस फील्ड में लड़कियों को कभी नहीं आना चाहिए, कभी नहीं ये सिर्फ आदमियों की जगह हैं औरतों के लिए नहीं वो सभी लडकियां बेवकूफ हैं जिन्होंने खुद का बिज़नेस करने का सपना देखा है। लड़कियों के लिए बस 9-5 की जॉब ही ठीक होती हैं…लड़कियों को कभी….नंदिनी हड़बड़ी में बोलती ही जा रही थी उसका बोलना तब रुका जब वेद ने उसके कंधो को दो- तीन बार झकझोर के उसका नाम लिया।             उसने वेद की तरफ देखा,”मुझे सैम से बात करनी हैं।”    ओके , नंबर हैं उनका…? वेद ने उसके बालों को ठीक करते हुए पूछा। हाँ है मेरे फोन में । नंदिनी तेजी से बोली ।                      
फोन कहाँ हैं तुम्हारा ? फोन….?फोन तो शायद…मेरे केबिन की टेबल पर हो…ऑफिस में. …!नंदिनी ने दिमाग पर जोर देते हुए कहा। ओके । वेद ने तनु को कॉल करके समीर का नंबर मंगवाया और अपने फोन से उसका नंबर कर दिया। कमरे में दिवार के कोने में खड़ा वेद ज्यादा बातें तो नहीं सुन पाया दोनों भाई-बहन की लेकिन जितना भी सुन पाया खुद को मिटा हुआ,हारा बिखरा बेबस समझने लगा। 

 भैया आप ठीक थें मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी थी सच में बहुत बड़ी तब नहीं समझ पायी थी कि ऐसा क्यों….लेकिन आज….आप सही थी सैम…..मैं गलत थी….मुझे माननी थी आपकी बात नहीं करना था जो किया….. लागातार रोती हुई नंदिनी हिचकियां ले-ले कर बातें दोहराये जा रही थीं जैसे कोई छोटी लड़की खिलौना टूट जाने पर पापा के सामने रोती है वैसे नंदिनी समीर के सामने रो रही थी और दिल में जो भी भरा था सब निकाल दे रही थी । उधर से समीर क्या कह रहा था वेद को कुछ समझ नहीं आ रहा था उसे बस नंदिनी की बिखरी हुई आवाज़ सुनाई दे रही थी। बात करते-करते नंदिनी ने चादर हटा दिया और पैर बेड के नीचे लटका दिए।वेद तुरंत कोने से हटकर नंदिनी की तरफ बढ़ने लगा।                                           

कुछ नहीं हुआ सैम…कुछ नहीं….बस अब मुझे ये सब छोड़ना हैं…सबकुछ । मैं कुछ भी कर सकती हूँ पर ये नहीं करुँगी अब कभी,मुझमें हिम्मत नहीं बची हैं भैया।मैं टूट गई मैं हार गई आप जीत गए,अभिनव जीत गया कात्या…सब भैया….सब जीत गए मुझसे मैं हार गई..मैं हार गई !नंदिनी दो कदम चलती हैं लेकिन लडखडा जाती है वेद उसे तुरंत संभाल लेता है लेकिन उसका फोन फर्श पर गिर जाता हैं। ‘मैं देखता हूँ’ कहकर वेद नंदिनी को अपनी बाहों में उठाकर वापस बिस्तर पर लिटाकर चादर ओढ़ा दिया फिर अपना फोन उठाया तो देखा उसकी स्क्रीन टूट गई थी लेकिन सैम की कॉल अभी भी चल रही थी उसने पता नहीं क्या सोचकर फोन अपनी जेब में रख लिया और चुपचाप कमरे के बाहर निकल गया।नंदिनी को बताया भी नहीं की उसके भाई की कॉल अभी भी चल रही है ।

To be Continued. ……….

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