Love story in Hindi(A wild heart part-8)

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 क्या हाल हैं दोस्तों सब आल ओके! सब कुछ ओके होना भी चाहिए वरना नंदिनी जी की तरह मदिरग्राही होने में ज्यादा वक्त नहीं लगता हैं। वैसे भी मदिरा है ही ऐसी चीज़ जो दुनिया भर की अपेक्षा का, Ignorance का, धोखे का, गम का का हर चीज़ का हिसाब बराबर करते हुए दोगुना प्रेम करती देती है।अब देखिये मेरे इस महुवाप्रेम पर लिखें दो शब्दोंं से प्रभावित हो आप भी ना इसे ट्राइ करना वरना आपके मम्मी-पापा जो कुटाई करेंगे ना आपकी तो हॉस्पिटल वाला अल्कोहॉल ही बचा पायेगा आपको। इसी अनमोल ज्ञान के साथ हम आगे की कथा आरम्भ करते हैं पेश हैं A Wild heart( love story in hindi) का आठवां भाग-

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आज नंदिनी पहली बार ऑफिस देर से पहुंची थी,बहुत गुस्सा आ रही थी खुद पर लेकिन अभी वो खुद को नहीं संभाल पा रही थी तो अपना गुस्सा कैसे संभाल पाती। रात का नशा और चोट दोनों अब भी सर पर घूम रहें थें। रूपा तो कितना ही मना कर रही थी जाने से लेकिन उसने मानी ही नहीं एक भी कहा की मैं एकदम ठीक हूँ और चली आयी। जैसे-तैसे करके अपने केबिन में पहुंची और कुर्सी पर गिर गई। हा!उसकी ये कुर्सी! कितना साथ देती हैं ना उसका, वो जब भी थकी होती हैं, उदास होती हैं, खुश होती हैं, प्यार से बैठती हैं उसपर,उछल के बैठती हैं, आते ही सीधे उसपर गिर जाती हैं कि खड़े-खड़े ही उसके रोए नोचती हैं , ये कुर्सी कभी अपना भाव नहीं बदलती, हर परिस्थिति में नंदिनी को एक ही अंदाज़ में बाहों में समेटती हैं।शायद इसी एक खूबी के लिए ही, इसी वफादारी के लिए ही लोग एक-दूसरे का खून करने पर उतर आतें हैं, तरह-तरह के राजनैतिक खेल रचे जातें हैं कुर्सी पाने के लिए ही क्योंकि कुर्सी अपना स्वभाव नहीं बदलती उसपर बैठने वाले लोग बदलते रहतें हैं पर कुर्सी…न! उसमें पहली वाली आत्मीयता हमेशा बनी रहती हैं। इस कुर्सी को भी नंदिनी से पहली वाली ही आत्मीयता हैं पहली वाली ही वफा हैं।

नंदिनी थोड़ी देर बाद संभल के बैठती हुई अपने लिए ब्लैक कॉफी मंगवाती हैं और सामने पड़ी फाइल खोल के बैठ जाती हैं।  

May i come….. तनु की आवाज थी ये जिसे कल ही फोन करके नंदिनी ने वापस से काम पर आने को कहा था। हाँ….हाँ आओ।

मैम ये हाथ पर चोट कैसे लग गई आपको? चेहरा भी उतरा हुआ हैं क्या तबियत ठीक नहीं हैं आपकी? नहीं ऐसा कुछ नहीं हैं थोड़ा सा बस वो…ग्लास… हाँ ग्लास लग गया था कल चाय पीते हुए काफी गर्म थी ना तो अचानक से पकड़ लिया था तो…. कल ड्रिंक करी थी ना आपने ..? तनु टेबल पर फाइल खोलकर दो एक कागज अपने हाथ में निकालने लगी,भाव बिलकुल सहज था उसका। नंदिनी कुछ नहीं बोली,बोलती भी क्या तनु कुछ घुमा-फिरा के पूछती तो वो भी कोई बहाना बना लेती लेकिन उसने तो सीधे ही दोषसिद्धि की थी। जानती हैं जब की झूठ नहीं बोल पाती तो क्यों कोशिश करती हैं? ऐसे लग रहा था कोई आत्मिक सहेली अपनी सहेली को उलाहना दे रही हो, नंदिनी अब भी कुछ नहीं बोली। अरे हाँ मैम! वो शुक्ला जी आपसे मिलने को कह रहें हैं खासे नाराज लग रहें थें, कह रहें थे कि कोई मज़ाक हैं क्या उनकी नौकरी किसी और को कैसे दी जा सकती हैं ऐसे थोड़े….                                                  हाँ वो मैंने वो पोस्ट मिस्टर वेद को दे दी हैं इतनी बड़ी कंपनी में काम करके आया हैं आखिर वो तो कुछ इस्तेमाल करना चाहिए ना उनके टैलेंट का। फिर शुक्ला जी को तो मैंने पहले ही कह दिया था कि जैसे वो कर रहें हैं ज्यादा नहीं चलने वाला ये सब! ऑफिस देर से आना, कर्मचारियों से सही ताल्लुकात ना रखना, मीटिंग में पहुँचना तो कभी नहीं पहुँचना, ना जाने कितनी ही बार मुझे अकेले ही प्रेजेंट करना पड़ा हैं कंपनी को। उन्हें लगता था ना कि मेरे पास कोई तोड़ नहीं हैं उनका तो अब देख लें। माना मिस्टर शुक्ला जितना 12-15 सालों का अनुभव नहीं है वेद के पास लेकिन अचीवमेंट ज्यादा हैं 8-9 साल के करिअर में। नंदिनी ने सोचते हुए कहा कुछ। 

 मैम डिसीशन तो ठीक हैं आपका लेकिन अच्छा होता आप एक मीटिंग बुलाकर सबकी राय जान कर तब फैसला लेती CEO की पोस्ट कोई छोटी-मोटी जिम्मेदारी तो होती नहीं…           

मुझे पूरी उम्मीद है कि मिस्टर वेद मुझे और मेरी कंपनी के भरोसे को कभी भी गिरने नहीं देंगे Enything else .           

नो मैम तो मैं शुक्लाजी को आपका निर्णय बता देती हूँ जाकर। हाँ ठीक हैं और जाते हुए वेद को भेज दीजियेगा। ओके मैम।     

मैम! आपने मुझे बुलाया था। वेद बिलकुल जेंटलमैन बन नंदिनी की टेबल के आगे खड़ा था।  आप तो जान ही रहें होंगे कि ऑफिस में क्या चल रहा हैं, मिस्टर शुक्ला बात का बतंगड़ बना रहें हैं मुझे पता है अभी वो और भी बहुत कुछ करेंगे उन्हें ये कुर्सी छीने जाने का काफी दुःख हैं।कल तुरंत ही कॉल करके बोल रहें थें कि ये ठीक नहीं कर रहीं हैं आप लेकिन मैंने भी कह दिया था कि…. मैम, वेद ने नंदिनी की बात बीच में ही काट दी। वो एक जमे-जमाए हुए एम्प्लॉई हैं आपके तो उन्हें नाराज करना सही नहीं हैं अगर आप मुझे लेकर परेशान हैं कि मेरी काबिलियत के हिसाब से मुझे जॉब नहीं मिल रही तो मैं बता दूँ कि मैं अपनी पिछली वाली पोस्ट पर भी काफी खुश था।                                            

वेद जी क्या आपको कोई बीमारी हैं? नंदिनी ने टेबल पर दोनों हाथ टिकाए और उन हाथों पर अपनी ठोडी।       

   जी मैम? मैं समझा नहीं? वेद एकदम से अचकचा गया।       

नहीं ये जो आप बात पूरी होने से पहले ही काट देते हैं और अपनी शुरू कर देतें हैं कोई परेशानी होती हैं क्या आपको ज्यादा देर सुनने में, हो तो बताइए इलाज करवा दें हम? इतना ही सुनना था कि वेद काफी झेंप गया और अपनी गर्दन झुका ली, वो तो बस कोशिश कर रहा था नंदिनी की परेशानी कम करने की। शायद कल नंदिनी ने किसी आवेग में आकर उसे वो पोस्ट ऑफर की हो और शुक्ला जी का कुछ सोचा ही ना हो, आज जब अहसास हुआ हो तो कहने में हिचकिचा रहीं हो कि ये पोस्ट तुम्हारे लिए नहीं हैं इसलिए उसने तो बस इतना सोचा था कि मैं ही अपनी तरफ से बोल दूँ तो उन्हें कोई शर्मिंदगी नहीं महसूस होगी उसे क्या पता था कि वो खुद शर्मिंदगी का पात्र बन जाएगा। बताइए…! नंदिनी की आवाज तेज थी इसबार। सॉरी मैम! वो बस इतना ही बोला।                                     

 हां लीजिये भाई आपका तो सॉरी हमेशा ही जिन्दाबाद रहता हैं कोई भी गलती करो धड़ाक से सॉरी बोलो बस मामला सुलट जाएगा आखिर सॉरी आपको बड़ा दिलवाला दिखाता हैं ना!लेकिन ये जो आपकी गलती हैं ये आपको छोटा दिमाग वाला दिखाती हैं समझे आप। आपको ज़रा सा भी,थोड़ा भी इल्म हैं कि आप इस ऑफिस के एकलौते और पहले ऐसे कर्मचारी हैं जिसने एक महीने में तीन-तीन पोस्ट की अदला-बदली करी हैं तो कोशिश किजिये अबकी जिस पोस्ट पर जमे हैं उसे ही पकड़े रहें दो-चार साल इत्मीनान से कोई कांटे तो लगे नहीं हैं उस कुर्सी में और फिर भी अगर आपको वो कुर्सी चुभ रही हैं तो बोलिए किसी और को दे दें वो आपको आजाद कर दें। नो मैम! मुझे क्या दिक्कत होगी मैं तो शुक्ला जी के लिए बोल रहा था।

क्यों शुक्ला जी मामा हैं क्या आपके जो इतना परेशान हैं आप? नहीं मैम शुक्ला जी की वजह से ही तो आप ने बुलाया था यहाँ… उन्हीं की वजह से परेशान भी लग रही थी…तभी।    देखो जी पहली बात तो मैं परेशान हूँ क्यों हूँ? क्यों नहीं हूँ? ये आपका मैटर नहीं हैं दूसरे मैंने शुक्ला जी के लिए नहीं सिर्फ ये पूछने के लिए बुलाया था कि आप कहीं मुझे या मेरी कंपनी के भरोसे को मार्केट में गिरने तो नहीं देंगे,लेकिन आपकी बातों से तो लग रहा हैं कि आप ऐसी टेन्शन वाली पोस्ट पर रहना ही नहीं चाहते।

सॉरी मैम! आपको मेरी बातों से ऐसा लगा लेकिन मेरा मतलब बिलकुल भी ऐसा नहीं था। मुझे शुरू से ऐसे difficult task पसंद आतें हैं इस पर यकीन दिलाने के लिए मैं आपको बताऊँ तो इसी रिस्क लेने की आदत ने मुझे Billionaire बनाया हुआ हैं, क्योंकि लोग मेरे काम से इम्प्रेस होते हैं, मुझे ज्वाइन करना चाहते थे, इन्फेक्ट जहां मैं काम करता था पहले वहाँ मैंने एक महीने में दो-दो प्रोमोशंस भी पाये हैं। तो आप निश्चिंत रहिये की मैं कभी कंपनी के भरोसे को गिरने दूँगा और आपके भरोसे को तो बिलकुल भी नहीं। मैं काफी खुश हूँ कि आपने मुझे ये दायित्व सौपा और मैं इस को पूरी निष्ठा के साथ निभाउंगा आप इसकी कोई फ़िक्र ना करें मैम। एक लंबे से वाक्य के बाद वेद खुद को ना सिर्फ सहज पा रहा था बल्कि अत्मविश्वास से भी भर गया था वो। नंदिनी को भी ये आत्मविश्वास अच्छा लगा लेकिन एक सवाल फिर ताज़ा हो गया उसके जहन में कि अमेरिका की इतनी बड़ी कंपनी में नौकरी करतें हुए इसने क्या सोचकर मेरी कंपनी को चुना? कोई इतने पैसों को लात मारकर चवन्नी गिनने थोड़े बैठता हैं? क्या सच में ही इसका दिमाग कम हैं? या इंडिया में इसे मातृप्रेम खींच लाया, काश! सैम को भी कनाडा से ….                                         बिलकुल  सही, मुझे उम्मीद है जिस जोश से अपने ये बातें कहीं उसी जोश से आप इन बातों पर अमल भी करेंगे, अब आप जा सकते हैं। 

नंदिनी ने दिमाग में चल रहे किसी भी सवाल को तरजीह ना देकर प्रोफेशनल रुख अख्तियार रखा, वो क्यों किसी की निजी जिन्दगी में दखल दे?                                                     मैम… वही खड़े-खड़े वेद ने किसी परिचित सी आवाज़ में नंदिनी को पुकारा,उसकी आवाज़ में इतना अपनापन था कि नंदिनी का सर आप ही उसकी तरफ उठ गया और मुँह से सिर्फ हल्का सा ‘हूँ’ ही निकल पाया। हूँ का मतलब तो आप सब जानते ही हैं ना? हूँ कोई आवाज़ नहीं होती अपने हृदय का स्वर होता हैं जो होठों की दिवार से दिल के लाख रोकने पर भी निकल ही आता हैं।जब बोलने के लिए जुबां पर कोई लफ्ज नहीं बचता ऐसे में हूँ कोई वरदान बनकर दिल से निकलता हैं जुबान नहीं हिलती इसमें ज्यादा ना होंठ ही खुलते हैं पर बात सामने वाले तक पहुँच ही जाती हैं। कितनी ही बार आप किसी से बात नहीं करना चाह रहें होंगे या कितनी ही बार कोई आपसे बात करना चाह रहा होगा ऐसे में “हूँ” ही दोनों के बीच शाब्दिक सम्बन्ध को जिंदा रखता हैं, कितनी ही बार आपने किसी सवाल का जवाब हाँ- हूँ में दिया होगा? बिना बोले गुस्सा दिखाने के लिए ही किस ढंग से ‘हूँ” निकल जाता हैं मुँह से।नंदिनी भी हाँ नहीं सिर्फ हूँ बोली थी।

आपकी चोट अभी कैसी हैं फ्रेश फील कर रही हैं अभी? वेद के स्वर में अभी भी वही आत्मीयता थी लेकिन अबकी नंदिनी चौक गई, उसने चेहरे पर कोई भाव नहीं आने दिया लेकिन हैरान थी वो अंदर से इसको कैसे पता मेरी चोट के बारे में, मेरी तबियत के बारे में? तनु…..?   

आप ऐसा सवाल नहीं कर सकते मुझसे क्योंकि आप किसी की पर्सनल लाइफ में इंट्रेस्ट नहीं ले सकते मेरी तो बिलकुल भी नहीं। नंदिनी ने जवाब में इतना ही कहा और कुर्सी घूमा कर खिड़की से सारा शहर देखने लगी। लेकिन सच तो ये है कि वो देख नहीं सोच रही थी जो उसे अभी-अभी याद आया। हाँ अभी याद आया एक स्पर्श उसे जो काफी मजबूत था और जिम्मेदार भी, माना की वो नशे मे थी लेकिन इतना ज्यादा भी नहीं की कोई स्नेहिल, सुरक्षात्मक और प्रेमभरा स्पर्श ना पहचान सके जबकि उस छूअन की तलाश में वो लंबे वक्त से भटकी हो..। किसकी मजबूत बांहे थी वें उन बाहों में उतनी ही मजबूती थी जितनी अभिनव की बाहों में … तो क्या अभिनव… .? लेकिन अभिनव की बाहों में इतना प्रेम इतना स्नेह, इतनी जिम्मेदारी कहाँ थी ना ही इतनी सुरक्षा..! कोई सपना था शायद। नंदिनी ने कुर्सी पर ही एक अंगड़ाई ली जैसे अभी अभी जगी हो। वेद जा चुका था। 

To be continued……

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