आदाब तबस्सुम part-3
जैसा कि आपने पिछले भाग में पढ़ा कि तबस्सुम सदफ से शर्त हार चुकी थी क्योंकि वह कॉलेज सदफ के पहुंचने के बाद पहुंची थी। अब आगे……..
तबस्सुम का छुट्टी के बाद घर जाने का मन नहीं जो रहा था,लेकिन वो कुछ और कर भी नहीं सकती थी। जब बस से उतरी तो यही सोच रही थी कि अल्लाह सदफ सो रहें हो, हॉस्पिटल में ही हो, या लाइब्रेरी में बैठें हो, यही सोचते-सोचते वह चल रही थी कि अचानक एक आवाज ने उसका ध्यान तोड़ दिया। सुनिए आपको हमारी कॉफी तो याद हैं ना? ये सदफ की आवाज थी जो अपने कमरे के बाहर खड़ा कॉफी पीते हुए
शायद तबस्सुम का ही वेट कर रहा था।
तबस्सुम ने देखा की वो सदफ के रूम के नीचे ही खड़ी थी, ऊपर की ओर देख कर मुँह बनाते हुए “बोली हाँ याद है।” और तेजी से अपने घर की तरफ चल दी। पीछे से सदफ मुस्कुराता रहा।
अम्मी,हुसैन कहाँ है? घर में घुसते ही तबस्सुम अपने भाई को ढूंढ़ने लगी ।वो तो खेलने गया है, क्यों? कोई काम है उससे कुछ। कुछ नहीं।
अच्छा जल्दी से हाथ… मुँह …..
अम्मी आज हमें बिलकुल भूख नहीं हैं, हम कॉलेज से खाकर आए हैं। इतना कहकर वो रूम में चली गई। शाम में जब अम्मी ने उसे कॉफी बनाकर दी तो वो एक कप कॉफी और मांगने लगी। क्यों पड़ोसियों को भी पिलाना है क्या? अम्मी बोलीं ।
नहीं वो तो बस…. अच्छा हुसैन आया?
क्या बात है तू आज हुसैन को इतना क्यों पूछ रही है? अरे अम्मी आप बस बता दो न इतने सवाल क्यों कर..
बताती हूँ..बताती हूँ..अपने कमरे में है पढ़ रहा होगा। शुक्रिया। तबस्सुम अपने हाथ में कॉफी पकड़े हुए चप्पलें पहनकर हुसैन के कमरे की ओर चल देती है।
हुसैन…!
क्या हुआ दीदी? ले पकड़ कॉफी, उसने अपने हाथ का कप हुसैन के हाथ में थमा दिया।
no, दी मैंने अपनी खत्म कर ली है आप भी अपनी खत्म करो।
थप्पड़ मारना है मैंने तेरे मुँह पे ये पकड़ और अपने पक्के यार सदफ को देके आ ।
अरे don’t worry दी, वो खुद बना लेंगे आप अपनी हिस्सा मत दो।
मुझे ज्यादा गुस्सा मत दिलाओ एक तो हम आपकी वजह से शर्त हारे और अब आप कॉफी भी नहीं देने जा रहें हैं।
हमने कहा था शर्त लगाने को ? हुसैन ने बेफिक्री वाले अंदाज में कहा। पर लगायी तो आपकी वजह से, तबस्सुम ने उसे लाल आँखे दिखाई। अच्छा लाइए मैं चला ही जाता हूँ।
हुसैन ने कप अच्छे से पकड़ लिया और चुपचाप जाने लगा।अगर कुछ कहें,तो हमें बिलकुल मत बताना। हुसैन कॉफी लेकर सदफ के कमरे में दाखिल हो गया,उस समय सदफ बाल संवारने में लगा हुआ था। हुसैन ने कॉफी टेबल पर रखते हुए कहा”कॉफी पी लीजियेगा।”।
कॉफी….? यार तुम भी न…. अभी हमारा मूड नही है और वैसे भी अभी आपकी सिस्टर के साथ कॉफी पीने जा ही रहें हैं इसीलिए तो तैयार होकर बैठे हैं।
उन्होंने ही भेजी है, हुसैन बोला।
what..? सदफ हैरान रह जाता है। उसका चेहरा देख कर ऐसा लग रहा था कि किसी ने पहले तेजी से आग जलाई हो और जलते ही उस पर पानी डाल दिया हो ।
हाँ, बोल रहीं थीं शर्त हारी हैं तो मुकर नहीं सकती। इतना कह कर हुसैन चल दिया।
अच्छा हुसैन सुनो…
नहीं कुछ नहीं सुनना मुझे, स्कूल के सिवा घर पर वैसे भी आप दोनों की तू-तू-मैं-मैं मुझे पढ़ने नहीं देती। अभी मुझे पढ़ने दें, मैं तो चला। बेवकूफ लड़की..! सदफ को थोड़ा गुस्सा आ गया उसने अपने बाल भी बिगाड़ दिए और मुँह फुला के बैठ गया।
फिर कुछ सोचा और हलके से हँस पड़ा। टेबल से कॉफी उठाकर एक ही घूट में पी डाली क्योंकि वो इतनी ज्यादा ठंडी हो चुकी थी, उसतक पहुँचते-पहुँचते।
हुसैन देख कल हमने अब्बा से आपकी शिकायत नहीं की थी लेकिन अगर आप आज फिर सदफ के साथ गयें तो फिर पक्का पिटवाऊंगी । तबस्सुम ने हुसैन को अच्छे से समझाते हुए कहा।
ठीक है आप पिटवा लेना, हुसैन हँसते हुए बोला। यानी आप आज भी सदफ के साथ जाएँगे? उनकी बाइक पर….
आदाब तबस्सुम, पीछे से सदफ के आ जाने से हुसैन की बात अधूरी रह गई।
भाड़ में जाए आपका आदाब ।
अच्छा जी! गुस्सा मुझे आप पर करना चाहिए उलटे आप मुझ पर गुस्सा कर रहीं हैं।
आपको गुस्सा क्यूँ करनी चाहिए भला ?
क्यों की आपने चीटिंग की, आप शर्त हारी थी फिर भी आप..
हमने कॉफी भिजवाई भी थी, इतना कह के तबस्सुम हुसैन का हाथ पकड़ तेजी से चल दी।
हमारी बात का मतलब आप समझ नहीं पायी थी। समझने की कोई जरुरत नहीं समझी हमने।
चलिए हटाइए, अच्छा आज आप हमारी बाइक पर बैठेंगी?
जी नहीं ।
ठीक है,हुसैन साहब चलिए आपको छोड़ दूँ। हुसैन, तबस्सुम हुसैन को घूरते हुए धीमे से हाथ दबा देती है उसका।
क्या सोचने लगे, कल जितना मज़ा आया था न आज उससे डबल मज़ा आएगा आपको। नहीं, हुसैन बस से ही जाएँगे।
हुसैन क्या बोलते हो चलोगे हमारी बाइक पर । दीदी बस से तो रोज़ जाता हूँ, बाइक से भी कभी-कभी जाना चाहिए न। ऐसा कीजिये आप बस से चली जाइये मैं सदफ के साथ जाऊंगा। हुसैन बाइक पर बैठ गया।
हुसैन, तबस्सुम गुस्से में बोली।
मेम साहिबा बच्चों पर कभी अपनी गुस्सा नहीं दिखाते, सदफ बाइक की स्पीड 80 करते हुए बोला।
आज तबस्सुम का मन न पढ़ाने में लग रहा था न किसी और काम में, लगे भी तो कैसे मन में इतनी गुस्सा जो भरी थी।सबने पुछा भी की क्या हुआ किसी को कुछ बताया भी नहीं । आते वक्त बस में भी किसी से कुछ नहीं बोली। चुपचाप सोच रही थी कि न हुसैन के homework में help करेगी, न उसका बैग पकड़ेगी और गोद में उठाकर बस पर तो कतई नहीं चढ़ाएगी। बस अपनी रफ्तार में चल रही थी।
सदफ अपनी दोस्त ज्योति को घर ड्राप करने आया था दोनों एक ही हॉस्पिटल मे ट्रेनिंग करते है । सदफ को मालूम था कि ज्योति के घर के पास वाली रोड से तबस्सुम की बस जाती है इसलिए वो बाहर खड़ा होकर तबस्सुम की बस का इंतजार कर रहा था । उसे दूर से बस आती दिखाई दी उसने तुरंत ही बाइक स्टार्ट की, सदफ ने सोचा था कि बस को रुकवा कर तबस्सुम को अपनी बाइक से घर छोड़ेगा वैसे भी इतने लोगो के सामने वह मना तो कर नहीं सकती थी ।
इससे पहले की सदफ बस रुकवाता थोड़ा आगे ही wrong side मे चल रहे ट्रक ने बस को जोरदार टक्कर मारी, अचानक से ही बस से चीखें सुनाई देने लगीं।
सारे वक्त सब कुछ अच्छा नहीं रहता, कहानी के इस भाग से आप ये आसानी से सीख सकतें हैं। इस accident के बाद से तबस्सुम और सदफ की जिन्दगी में क्या बदलाव आएँगे ये देखना वाकई दिलचस्प होगा आपके लिए भी मेरे लिए भी।