थोड़ा सा इश्क़ पार्ट 10

 

हैलो फ्रेंड्स ! उम्मीद करता हूँ कि आप आज दोगुने खुश होंगे ,पहली ख़ुशी तो मेरे इतने दिनों बाद आपसे मुखातिब होने की और दूसरी आज मैं थोड़ा-सा इश्क़ का 10 वां भाग पेश करने जा रहा हूं।

 इस उम्मीद के साथ की इस कहानी से आपने कुछ सीख तो जरूर ही ली होगी कुछ अनुभव तो आपने भी किया होगा! तो चलिए करवाते हैं आपको इश्कगली की आखिरी सैर .. सफर कैसा लगा बताइयेगा जरूर…..

उफ़! कितना थक गया हूँ मैं मुझे अब आराम करना चाहिए…! जय ने मुस्कुराते हुए कहा और फोन वहीं सोफे पे डालकर शावर लेने चला गया । बाथरूम से बाहर निकल के उसने अपने आप को देखा ” अरे ये कौन है?” …. जैल लगे बाल और हलकी बढी हुई दाढ़ी …. सस्स्स्स्स…..ये तो रितु का जय है। रितु जय को ऐसे ही पसंद करती हैं न? जय वापस बाथरूम में चला गया।

कितने दिनों के बाद जय अपने वीडिओ गेम वाले ग्रुप के सभी दोस्तों के साथ फेस टाइम कर रहा था । जब रितु थी तो ये शाम का वक्त अक्सर उसका हो जाया करता था। तभी अचानक से जय का फोन फिर एक बार बजा और स्क्रीन पर वही जान से प्यारा नाम रितु चमक उठा। जय ने फोन हाथ में उठाया नाम को देखा और लम्बी सी साँस के साथ फोन उल्टा कर के रख दिया , फोन न काटा ना स्विचऑफ किया बस उसे बजने दिया।

 ऐसे ही तो वो रितु की जिन्दगी में भी बजा करता था , वो न सही से सुनती थी , न कुछ कहती थी न अमल करती थी बस उसे बोलने ही देती थी। कभी-कभी तो उसे यहाँ तक महसूस हुआ कि वो किसी लड़की से नहीं बल्कि दीवार को समझा रहा हो…और कभी-कभी लगता कि आज तो ये घर जाकर सबके दिमाग सही कर देगी बस आज ही से अपने आप से प्यार करने लगेगी आज ही डर खत्म हो जाएगा इसका…? लेकिन जैसा जय को हमेशा लगा वैसा आज तक नहीं हुआ । फोन तीन-चार बार बजने के बाद बंद हो गया ठीक वैसे ही जैसे जय खामोश हो गया रितु की जिन्दगी में? जिन्दगी….? ओह क्या सच में रितु जो जी रही है वो जिन्दगी कहलाने लायक भी है?

 

जय ने वापस सारा ध्यान गेम पर लगाने की कोशिश की और वो कामयाब भी हुआ , पर पता नहीं क्यूँ अब उसे स्क्रीन धुंधली दिखाई दे रही थी । एक दो बार स्क्रीन साफ भी की लेकिन अब भी साफ नहीं हुई। पता नहीं अचानक से ही लैपटॉप पे दो पानी की बूंदे कैसे गिर गयीं , जय ने झल्ला के लैपटॉप ही डेस्क के नीचे एक झटके के साथ फेक दिया। लैपटॉप फर्श पे गिर कर ऐसे टूटा जैसे जय का दिल हो जो पूरे कमरे में बिखर गया हो! वो रो नहीं रहा…वो क्यूँ रोयेगा… वो कभी किसी लड़की के लिए नहीं रो सकता ?…रितु थी कौन उसकी… सिर्फ दोस्त थी बस दोस्त…. क्या रितु बस दोस्त ही थी?….उसकी जिन्दगी नहीं थी ?….जय ने गुस्से में अपना हाथ मेज पे दे मारा। एक चीख के साथ एक नर्म सिसकी भी कमरे में तैर गई , हवा कमरे की काफी ठंडी हो गई थी जैसे उसने जय के आँखों की नमी सोख ली हो। ख़िडकी का पर्दा हवा के साथ बार-बार डूबते सूरज का नजारा उसकी आँखों के सामने ले आ रहा था , मानो वो ढलता सूरज नहीं जय का अँधेरे की आगोश में जाता इश्क़ था। कहीं दूर से अजान की आवाज़ उठी तो जय को लगा की कोई मर्सिया पढ़ रहा हो…मर्सिया? पर कौन मर गया ? …. अरे अभी-अभी तो उसी का भरोसा मरा है तो वहीं इश्क़ बैठ के मातमपुर्सी कर रहा होगा ! जय रो नहीं रहा था जय के भीतर एक नादान लड़का छिपा था वो अपनी आँखे लाल किये जा रहा था।

जय उठा फर्स्ट ऐड बॉक्स तक गया और खुद ही अपनी पट्टी करने लगा उसके जहन में आदित्य की बात तैरने लगी “तुम दोनों में Understanding नहीं है, तुम दोनों एक दूसरे के लिए नहीं बने हो” जय ने एक लम्बी गहरी सांस ली।

दोस्तों आज के लिए इतना ही मिलते है अगले ब्लॉग में यदि आपने अभी तक इस स्टोरी के पिछले पार्ट नही पढ़े तो पहले उन्हें जरूर पढ़े। 

           < थोड़ा सा इश्क़ पार्ट 1 

           < थोड़ा सा इश्क़ पार्ट 2

           < थोड़ा सा इश्क़ पार्ट 3                              <  थोड़ा सा इश्क़ पार्ट 4

           < थोड़ा सा इश्क़ पार्ट 5

           < थोड़ा सा इश्क़ पार्ट 6

           < थोड़ा सा इश्क़ पार्ट 7                                < थोड़ा सा इश्क़ पार्ट 8 

          < थोड़ा सा इश्क पार्ट 9

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