ना जाने क्यों होता हैं ये जिन्दगी के साथ
अचानक ये मन किसी के चलें जाने के बाद करें फिर उसकी याद छोटी-छोटी सी बात……
वेद ने कहा था की वो 5 दिन बाद इंडिया से हमेशा-हमेशा के लिए चला जायेगा और वो दिन आज है। नंदिनी नहीं जानती वेद कहाँ हैं, जब से होश में आयी हैं तबसे वेद को कॉल किये जा रही है लेकिन फोन बंद आ रहा है उसका। समीर , अरुण और तनु तो पहले से ही फोन मिला-मिला कर परेशान थे। वेद ने किसी का फोन नहीं रिसीव किया या हो सकता है कि उसे पता ही न हो कि उसके नम्बर पर कॉल किया जा रहा था। नंदिनी उसके फोन न उठाने से बहुत परेशान है बिल्कुल बच्चों की तरह रो रही है। तनु अपना सारा गुस्सा भूल गयी है उसे तरस आ रहा था नंदिनी की हालत पर आखिर उसने गुस्सा किया ही क्यों? बेचारी देखों कैसे बिलख रही है जैसे किसी बच्चें से उसका खिलौना छिन लिया गया हो। तनु को लग रहा था कि ये उसकी बातों की वजह से है लेकिन सच पूछा जाये तो शायद आज पहली बार नंदिनी को दिल से पछतावा महसूस हो रहा था, इतने सालों बाद पहली बार उसे वेद की अहमियत का अहसास हुआ, आज उन मजबूत बाहों की ताकत का अहसास हुआ उसे जिन्होंने जाने-अनजाने न जाने कितनी ही बार उसे संभाला था ! उन आँखों की भाषा आज उसे समझ आयी थी जो अक्सर रात में सिरहाने से उसे तका करती थीं। वो प्यासे होंठ आज उसे बेचैन कर रहें हैं जिन्होंने कई बार खुद को उसके होठों को चूमने से रोका है । वो आँसू उसे आज रुला रहें हैं जो कभी उसके लिए बहें थें। वेद की उन बातों की कीमत उसे आज समझ आ रही है जिन्हें उसने फ्री की एडवाइज समझ के नजरअंदाज़ किया था ।
Heart |
जब सारे नम्बर ट्राई करके देख लिए गएँ लेकिन वेद के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो नंदिनी खुद ही वेद को ढूंढने के लिए जाने लगी ।
कहाँ जा रही हो ? समीर ने उसे रोक लिया । भैय्या वेद की फ्लाइट रात की है उससे पहले उन्हें ढूंढना जरूरी है । नंदिनी सुबक रही थी।
अपनी हालत देखी है ! माथे पर पट्टी , तेज बुखार और बाहर का मौसम बारिश वाला ऐसी सिचुएशन में तुम उसे ढूंढने जाओगी? तुम यहाँ चुपचाप आराम करों मैं और अरुण जाकर उसे देखते है। समीर उसे एक कुर्सी पर बैठाते हुए कहा । सैम मुझे कुछ नहीं हुआ है मैं ठीक हूँ मुझे बस वेद को ढूंढने जाने दीजिए प्लीज। नंदिनी ने इतनी भीगी और नर्म आवाज में रिक्वेस्ट की कि लग रहा था कहीं पर कोई मोम जलकर पिघल गयी हो ।
छोटी, भरोसा नहीं हैं अपने भाई पर! मैं सच कह रहा हूँ जब तक उसे ढूंढ नहीं लूंगा तब तक घर नहीं आऊंगा। तुम बस अपना ख्याल रखो ताकि जब वो आएं तो उसे बीमार न मिलो वरना कहेगा कि चार दिन भी मेरे बिना खुद को नहीं संभाल पायी । मैं भी साथ चलती हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि शायद मैं वो जगहें जानती हूँ जहाँ वो मिल सकतें हैं । तनु नंदिनी को इस हालत में ज्यादा देर नहीं देख सकती थी ।
तीनों नंदिनी को रोज के पास छोड़कर चले गएँ थें। रोज ने नंदिनी को माँ की तरफ सीने से तो लगा लिया लेकिन उसके जैसे सारे दर्द को छू-मंतर कर देने वाला जादू उसके पास न था या कहा जाये तो नंदिनी उस जादू के लिए बहुत बड़ी थी इसीलिए नंदिनी की उलझन जरा भी कम नहीं हो रही थी।
सच बताओगी , इतने सालों में तुम्हें कभी नहीं लगा कि वो तुम्हारे लिए जरूरी है ?नंदिनी झूठ नहीं सिर्फ सच। रोज ने उसके बालों को सहलाते हुए पूछा । उसने कोई जवाब न दिया बल्कि और तेज सुबकने लगी ।
नंदिनी…..!
लगा था! लेकिन मैंने सोचा ये सब कमजोर होने की निशानी है इसीलिए मैं और सख्त होती गयी उसके साथ, मैं नहीं चाहती थी कि जैसा एक बार मेरे साथ हुआ वैसा दोबारा……. भूल जाओ नंदिनी पिछला सब कुछ भूल जाओ और याद रखो सभी आदमी एक जैसे नहीं होतें, जैसा हो चुका है जरूरी नहीं वैसा दुबारा भी हो। एक हादसा जो पहले हो चुका है उससे सावधान रहना समझदारी है लेकिन उससे डर कर रहना बहुत बड़ी बेवकूफी है और तुमने ये बेवकूफी कर दी । हाँ …..नंदिनी रोज की गोद में ऐसे सर छुपा रही थी, कि पिछला जो भी हुआ है वो उसके पीठ पीछे ही खड़ा है।
शाम हो चुकी थी। मौसम काफी बेरुखा हो गया था, आसमान पर काले-काले बादल ऐसे छाये थें जैसे सब इकट्ठा होकर कोई तमाशा देख रहें हो,हवा चलती तितर-बितर हो जाते जैसे ही हवा थमती फिर से एक में मिल जाते। उन काले-घने बादलों से पानी की बुँदे छनकर जमीन पर गिरने लगी थी। जैसे नंदिनी की आँखों से आंसू गिर रहें थें वैसे ही ।
Nandini |
नंदिनी सबको कॉल कर रही थी हर दस मिनट पर लेकिन “अभी नहीं, हौसला रखो , मिल जाएगा, हम ढूंढ लेंगे , देख रहें हैं ।” जैसे शब्द ही सुन पा रही थी। पिछले चार-पांच घंटे से वो लोग वेद को ढूंढ रहें थें और वेद उन्हें नही मिला मतलब वेद चला जायेगा वो मुझसे कभी नहीं मिल पायेगा , वो लोग उसे कभी मेरे पास नहीं लेकर आ सकतें! अब मुझे ही कुछ करना होगा। नंदिनी ने अपना फोन उठा लिया और कमरे से जाने लगी। कहाँ जा रही हो ? रोज ने उसे तुरंत रोक लिया। समीर ने जब से रोज को सारी बात बताकर नंदिनी उसे सौपीं हैं तब से वो कमरे से बाहर भी नहीं निकली । अभी थोड़ी देर पहले ही बेड से उठकर सोफे पर बैठ गयी थी आँख बंद करके तो शायद नंदिनी ने सोचा की वो सो रही है ।
पानी पीने जा रही थी। वो वहीं रुक गयी । मुझे बोल देती या किसी को आवाज दे देती। यहीं रुको मैं मंगवती हूँ रूपा…..रूप… रुको मैं ही लेकर आती हूँ तुम आराम करो। रोज उठकर पानी लेने चली गयी। नंदिनी जानती थी कि अगर वो आ गयी तो फिर उसे जाने नही देगी इसीलिए रोज के जाते ही वो चाभी उठाकर चोर की तरह सीढ़ियों की तरफ भागी। नंदिनी को हॉल में देख रोज उसके पीछे भागी और घर के बाकी नौकर भी लेकिन नंदिनी उन लोगों से आगे थी। वो लोग जब तक उसे रोकते वो गाड़ी स्टार्ट कर निकल गयी । किसी को इनके पीछे भेजतें हैं?
रहने दो आगे समीर और तनु देख लेंगे इनको ।
नंदिनी इस भयानक मौसम में सड़को पर कार दौड़ा रही थी । उसे नहीं पता कि वो कैसे जाएगी , कहाँ जाएगी ? लेकिन उसे उस गोरे से हलके लम्बे चेहरे तक पहुँचना था जिसकी खूबसूरती का अनुमान लगाना भी किसी के बस की बात न थी , नंदिनी को उन काले रंग के सुलझे से बालों को अपनी उगलियों से उलझाना था , नंदिनी को उन बांहों तक पहुँचना था जिनमें वो सारे दर्द भूल कर गिरते ही सो जाये। हाँ नंदिनी बस वहीं तक जाना चाहती थी। उसे जल्द से जल्द वेद तक पहुँचना होगा और जब वेद के पास पहुंचेगी तो थप्पड़ मार कर पूछेगी कि होते कौन हो मुझे छोड़ने वाले तुम ? एक नहीं दो थप्पड़ मारेगी , उसके बाद उसे खूब उल्टा-सीधा सुनाएगी , उसकी एक बात भी नहीं सुनेगी, वेद का फोन तोड़ देगी उसका लगेज फेक देंगी और फिर गुस्सा करती हुई वापस चली आएगी। नंदिनी कार चलाते वक्त ये सब सोच रही थी की उसे क्या करना है वेद से मिलकर और क्या नहीं। लेकिन वेद तक कैसे पहुँचेगी ? कैसे इतने कम वक्त में उससे मिल पाएगी? यहाँ बारिश हो रही है क्या एयरपोर्ट पर भी बारिश हो रही होगी? क्या सारी फ्लाइट कैंसिल हो जाएंगी? अगर मौसम न साफ हुआ तो जरूर फ्लाइट कैंसिल हो जाएगी! नंदिनी के दिमाग़ में जैसे ही ये खयाल आया वो बहुत तेज बारिश होने की दुआ करने लगी। उसे खुद बहुत ठंड लग रही थी, थोड़ी सी वो भीगी हुई भी थी और बुखार भी था वेद तक पहुंचते-पहुंचते वो पूरा भीग जाएगी ये भी उसे मालूम था लेकिन इसके बावजूद वो बारिश के होने की दुआ मना रही थी । उसकी दुआ असर भी कर रही थी बारिश काफी तेज हो चुकी थी बिजली भी बहुत तेज चमक रही थी और बार-बार नंदिनी की आँखों में लग रही थी उसे कार चलाने में भी दिक्कत हो रही थी लेकिन इसके बावजूद न उसने कार धीमी की और न बारिश बंद होने की दुआ ही की। नंदिनी की कार बहुत स्पीड में थी आगे कुछ भी साफ नहीं दिख रहा था अचानक उसने ब्रेक लगा दिया सामने से किसी ने हाथ दिखाया था।
Ved |
नंदिनी ने खिड़की का शीशा उतरा।
मैम क्या आप मुझे आगे तक लिफ्ट दे सकती हैं? एक लड़का था जो लिफ्ट मांग रहा था ।
नहीं, …नहीं दे सकती । नंदिनी ने इतना कहा और कार का शीशा वापस चढ़ा दिया।
लिफ्ट नहीं देना था तो रोका क्यों? वो गुस्सा करता हुआ चला गया, नंदिनी खुद से ये सवाल करती रही कि मैंने रोका क्यों? उसने शर्ट की स्लीव्स बिल्कुल वैसे ही मोड़ रखी थी जैसे वेद , कद-काठी भी वेद के जैसी और खड़े होने का स्टाइल भी वेद जैसा था । शायद नंदिनी को लगा कि वो वेद ही है । नंदिनी की आँखों से फिर से आँसू बहने लगे । तभी उसका फोन बज उठा। नंदिनी कहाँ हो तुम ? घर से बाहर क्यों निकली? हम एयरपोर्ट पर ही खड़े हैं उसे ढूंढ रहें हैं शायद वो हम सब से छुपकर जाने वाला है। तुम वापस जाओ , हम रोक लेंगे उसे । समीर की आवाज थी फोन के उस तरफ ।
भैया दिल्ली एयरपोर्ट पर बारिश नहीं हो रही है क्या ? नहीं यहाँ कहीं भी बारिश नहीं हो रही है अपने शहर में भी हो रही हैं तो सिर्फ आधी जगह। इसीलिए वापस घर जाओ क्योंकि वैसे भी तुम यहाँ टाइम से नही पहुँच पाओगी और फिर मैं यहाँ हूँ ही। कल सुबह तुम्हारी आँख खुलने से पहले तुम्हारे सामने वेद को न लकर खड़ा कर दूँ तो भाई नहीं हूँ नंदिनी तुम्हारा। प्लीज ट्रस्ट कर मुझपर और घर वापस जा मेरे बच्चे,हम उसे लेकर आएंगे। समीर का गला भर गया था ।
ठीक भैय्या , मैं घर जा रही हूँ । कहकर नंदिनी ने फोन कट कर दिया और उसके दिमाग ने गणित लगाना शुरु कर दिया कि किस हिसाब से वो गाड़ी चलाएं कि दिल्ली एयरपोर्ट तक आधे घंटे में पहुँच जाएँ।
नंदिनी कार चला रही है बहुत तेजी से ,नहीं कार नहीं कोई हवा का घोड़ा है वो जिसमें नंदिनी सवार है । उसे न सडक का पता है न स्पीड का बस उसे वेद का चेहरा ही दिख रहा है चारो तरफ। समीर का फोन दो बार बज चुका था लेकिन नंदिनी ने कॉल रिसीव करके अपना टाइम गँवाना सही नहीं समझा अब तो वो खुद एयरपोर्ट पहुंचने ही वाली है तभी लेकिन फिर फोन बजा तो उसने कॉल उठा ली । मैंने तुमसे कहा न एयरपोर्ट आने में कोई फायदा नहीं हैं अब तो अमेरिका जाने वाली लास्ट फ्लाइट भी 15 मिनट पहले निकल गयी है और बाकी फ्लाइट्स कैंसिल कर दी गयी हैं बिगड़ते मौसम को देखते हुए। वेद नहीं मिला …फ्लाइट भी गयी…. नंदिनी कार से उतर कर धम्म से ही सडक पर बैठ गयी
Nandini |
उसके हाथ से फोन छूट चुका था। खुद को संभालती रही…संभालती रही उधर से समीर पूछता रहा कहाँ हो….लेकिन नंदिनी की लम्बी-लम्बी सिसकियों के सिवा कुछ भी नहीं सुनाई दे रहा था उसे । हाँ नंदिनी सिसक रही थी , अंदर ही अंदर कुछ चट्ट से होकर टूट गया था उसके। उसके साथ हमेशा ऐसा होता आया है जिस चीज को वो पाने के लिए पूरे जी-जान से कोशिश करती है उसी चीज को कुदरत जी-जान से अलग करने की कोशिश करती है। सोच लीजिये न उसके शहर में बारिश और दिल्ली में सुनहरा मौसम। वो समझ चुकी थी की वेद को वो हमेशा के लिए खो चुकी है वो वेद जो जरा सी तकलीफ में उसके बगल में खड़ा मिलता था अब बड़ी से बड़ी परेशानी में भी उसका साथ नहीं देगा, वो वेद जो हर बात पे सलाह देता था उसे अब वो खामोश हो जायेगा । वो वेद जो बचपन से ही पागलों की तरह प्यार करता था उससे अब समझदार हो जाएगा, वो वेद जो उसकी खबरे अख़बारों में पढ़ता था अब वो अख़बारों में पढ़ेगी उसे। वो वेद जो हमेशा नंदिनी को खुश रखना चाहता था आज वही उसे रुला कर चला गया। आज टूट गयी नंदिनी,खाली हो गयी। जिंदगी में पहली दफा हार गयी नंदिनी। नंदिनी…..आज नंदिनी नहीं बची वेदमयी हो गयी । अब वो गिरना चाहती है और गिर कर फिर कभी उठना नहीं चाहती। क्यों. …भगवान क्यों. ….? दिल्ली की सड़को पर देश की एक मशहूर लड़की ऐसे चीख रही थी कि आगरा के पगलखाने के भागी हुई मरीज हो। उसके माथे की पट्टी निकल चुकी थी और उसके जख्म पर पानी नमक की तरफ गिर रहा था। बारिशों की सीधी धार उसके बदन पर पड़ रही थी वो भीग रही थी, काँप रही थी और सोच रही थी की की कोई बादल उसके सर पर भी फट जाये। वो सडक पर ही गिर पड़ी। वेद…..! तुम नहीं जा सकते मुझे छोड़कर। नंदिनी फिर से चीखने लगी। रात 10 बजे सुनसान सडक पर नंदिनी का ऐसे चीखना कलेजा कंपा दे रहा था ।
वेद….! वो वेद का नाम लगतार लेती हुई चीखती ही जा रही थी, जब तक वो बेदम न हो कर खामोश न हो गयी।
नंदिनी सडक पर भर चुके पानी में वैसे ही पड़ी रही। बारिश का पानी उसके बदन पर गिरना बंद हो चुका था। उसे लगा कि कोई उसके पास खड़ा है छाता लेकर उसमें सर उठाने भर की भी ताकत नहीं थी वो वैसी ही पड़ी रही। कोई घुटने के बल बैठा है, उसे लगा । तब उसने हिम्मत करके अपना सर उठाया उसे लगा की सामने वेद है । वो मुस्कुरा दी,” तुम फिर से नहीं हो यहाँ।” उसका सर फिर से नीचे गिर गया ।
मैं ही हूँ । जैसे ही नंदिनी ने ये आवाज सुनी उसे लगा कि उसके बदन में जान आ गयी है । वो तुरंत उठकर बैठने लगी तो वेद ने उसे सहारा दिया ।
वो वेद की आँखों में देखने लगी और वेद उसकी। उस वेद से मिलने पर क्या करना था क्या नही उसे कुछ नहीं याद आया। उसने बस खुद को ढीला करके वेद की बांहों में गिरा दिया और वेद के तपते होठों पर अपने नाजुक से होंठ रख दिये। हर ऐसी-वैसी बात पर नंदिनी को इसलिए टोक देना की कहीं मीडिया में कोई गलत खबर न छप जाये ,उसने आज नंदिनी को नहीं रोका बल्कि उस तेज बारिश में छाते के साथ उस खबर को भी उड़ जाने दिया और उसने नंदिनी के प्यार का जवाब उतने ही प्यार से देतें हुए उसे कस के अपनी दोनो बांहों में भर लेता है । वेद का एक हाथ नंदिनी की कमर को सहारा दिये हुए था और दूसरा हाथ उसके सर को संभाले था । नंदिनी वेद में खोने को तैयार थी और वेद उसे खुद में सामाने को। जिस तरह नदी सागर में गिर कर खुद को मिटाने के लिए उतावली रहती है उसी तरह की हालत इस वक्त नंदिनी की भी थी। I think we should leave now…! उन दोनों को काफी रोमांटिक होता देख अरुण ने कहा अपने आंसू पोछकर । वेद कैसे आएगा। तनु अभी भी सिसक रही थी । उसके पास नंदिनी की कार है। समीर ने कहा । और नंदिनी भी । अरुण ने जोड़ा । नंदिनी को ना लगे इतनी रात में ?
उसे यहाँ पर वेद के सिवा किसी से भी खतरा नहीं है । अरुण तुम समझते नहीं. ……
अगर यहाँ भैय्या न होते तो अभी बोल देता की आखिर जाने का मन क्यों नहीं हैं तुम्हारा, फ्री में इनको इतना अच्छा सीन देखने को मिल रहा है तो….
अच्छा मुझे ही अच्छा लग रहा है तुम्हें तो अच्छा नहीं लग रहा न! बेशर्म सामने कोई बड़ा है लिहाज कर । खुद भैय्या को भी अच्छा लग रहा है ।
ya! I’m happy for her . अब हमें निकलना चाहिए। समीर ने कार दूसरी सडक की तरफ मोड़ने का इशारा किया और अपने आंसु पोंछने लगा।
I’m Sorry वेद । नंदिनी रोती हुई उसके सीने से लग गयी। इतने सालों में वेद ने पहली बार उसके मुँह से ये शब्द सुना,तो आप ही आप आँखें भर आयी और उसने कसके नंदिनी को सीने से लगा लिया ।
मुझे नहीं मालूम था की तुम मुझसे इतना प्यार करते हो। नंदिनी ने उसके गोरे से लम्बे चेहरे को देखते हुए कहा। मुझे भी कहाँ पता था कि तुम मुझसे इतना प्यार करती हो नंदिनी। वेद ने उसके सर से अपना सर लगाते हुए कहा । I love you नंदिनी ।
I. ..lo. …v. ..you. …to. … नंदिनी ने इतना फंसते-फंसते जवाब दिया की वेद को हँसी आ गयी । हँसे क्यों? नंदिनी थोड़ा बिगड़ी।
मैं कोई तुम्हारी गर्दन पर छुरी रखे हूँ जो ऐसे बोल रही हो । नहीं तो , काफी दिनों से किसी से बोला नहीं न । क्या सच में? अच्छा तो जरा फिर से बोल कर दिखाओ । नहीं दोबारा नहीं ।
बस एक बार । वेद ने आहिस्ते से कहा ।
नहीं । नंदिनी ने मुस्कुराते हुए मना कर दिया । वेद ने उसकी मुस्कुराहट को अपने होठों से दबा दिया , उसने एक सिसकी ली और खामोश हो गयी। पता नहीं बारिश की बूँन्दे थी उसके होठो पर या आँसू ,जो होठों की खूबसूरती में चार चांद लगा रहें थें।
Ved Nandini |
नंदिनी ने भी अपने हाथ वेद के कंधे पर टिका दिये। वेद की आँखे उसकी बंद आँखों पर टिकी हुई थी जो खुलने की कोशिश तो कर रही थी लेकिन खुल नहीं पा रहीं थीं ।
To be Continued. …….