दोस्तों, ये मेरी इस कहानी का अंतिम भाग है। मुझे उम्मीद है कि आप इसे पूरे दिल से पढ़ेंगे और कुछ सीख भी लेंगे। क्योंकि ये एक लव स्टोरी होने के साथ-साथ आज के रिश्तों की मोरल स्टोरी भी है।
श्वेता इतनी रात को तुम यहाँ? यश गाड़ी का शीशा नीचे करता है।
आज ऑफिस में काम ज्यादा था तो देर हो गई श्वेता ने ऐसे जवाब दिया की उसे कोई हैरानी ही नहीं हुई इस वक़्त यश को देखकर।
अच्छा। यश ने सड़क के चारों तरफ देखा,” मैं तुम्हें घर तक छोड़ दूँ?” वह बोला। नहीं इतनी तकलीफ की कोई जरुरत नहीं है। रात काफी हो चुकी है और तुम सड़क पर अकेली।
जिन्दगी काफी बड़ी है और उसमें भी मैं अकेले ही हूँ। श्वेता ने थोड़े तीखे लहजे में कहा लेकिन अगले ही पल बात ना बढ़ जाए तुरंत लहजा नर्म कर दूसरी बात छेड़ दी ,” बच्ची कैसी है?
पीछे सो रही है। इसके बाद दोनों चुप हो गए ना श्वेता ने कुछ कहा और ना ही यश ने ही गाड़ी आगे बढ़ाई।बस दोनों चुप्पी साधे रात के अँधेरे को घूरने लगे। थोड़ी देर बाद यश रेडियो ऑन करता है जिस पर अभी वही गाना आ रहा था लेकिन बस खत्म होने वाला था। शायद इसी गाने के बचे होने की उम्मीद से ही उसने रेडियो खोला था। गाने के बजते ही उसने अपनी नजरें श्वेता के चेहरे पर गड़ा देता है।श्वेता भी एक बरगी यश को देखती है फिर नजरें घूमा लेती है।
श्वेता कल फाल्गुनी का बर्थडे है…… भूलने की आदत तुम्हारी है, मुझे सब याद रहता है। उसने बेरुखी से जवाब दिया।
इतनी नाराजगी…! इसपर एक गुस्से भरा जवाब मिलने की उम्मीद थी यश को लेकिन श्वेता कुछ नहीं बोली। अभी कोई ऑटो मिलने की उम्मीद नहीं है।यश फिर बोला।
पैदल चली जाऊंगी।
सुनो थोड़ी दूर साथ चलो अगर ऑटो मिल जाए तो उतर जाना। अगर टैक्सी या ऑटो ना मिला तो….?
तो भी उतर जाना ठीक है , अब तो बैठ जाओ। यश रिक्वेस्ट करता है। श्वेता कार में बैठ जाती है यश की बगल वाली सीट पर।
कोई बात करनी है क्या ?
हाँ करनी थी लेकिन उसके लिए थोड़ा वक़्त नहीं पूरी जिन्दगी चाहिए यश कार स्टार्ट कर देता है।
अपनी शायराना बातें बंद रखो।
ये जिन्दगी की बात है शायरी नहीं सनम.. यकीं करो मैंने यूँ ही नहीं कही सनम।
घर चलो पहले की तरह साथ रहते दोनों। क्यों कोई लाने वाले थे तुम वो आयी नहीं क्या। श्वेता ने तंज कसा।
व्हाट? ये किसने कहा तुमसे? यश एक दम से चौक उठा। क्यों क्या कर लोगों उसका? वो तो तुम्हारे घर में भी नहीं रहते जो उन्हें निकाल दोगे। just shut up ! ऐसी बेहूदी बातों पर ही यकीन करना था तुम्हें। मैंने कहा था तुमसे दूर रहने से दूरियां और गलतफहमियां बढ़ती हैं अभी देखो मेरी बात सच भी हो गई। उसने स्टेरिंग पर हाथ पटकते हुए कहा। श्वेता उसके चेहरे की ओर गौर से देखने लगी , ” तो क्या तुम दूसरी शादी….?
पागल हो क्या तुम? मेरी छोटी सी बच्ची है तुम हो … एक दुनिया है मेरी फिर भी….! यार कमाल करती हो तुम भी, मैंने पहली बार जिसे चाहा था वो तुम हो और जिसे आखिरी दम तक चाहूगा वो भी तुम हो श्वेता। अंदाज थोड़ा रुमानी हो गया था बात खत्म करते-करते यश का ।
सॉरी। ये राहत भरा शब्द था जो श्वेता के दिल से निकला था। तो…. अब घर चलोगी? ये एक उम्मीद थी जो उसके मुँह से निकली।
किसका घर? मेरा? मैं तो किराये के घर में रहती हूँ, या तुम्हारा घर ? जिसमें मेरे लिए कोई जगह नहीं । एक फीकी हँसी फैल गई श्वेता के होंठों पर ।
यश ने लम्बी सांस लेकर कहना शुरू किया,”मैं मानता हूँ कि मैंने गलत किया , मै काफी शर्मिंदा भी हूँ इसके लिए।ये अहसास मुझे तब हुआ जब दीदी ने मुझे समझाया। वो खुद आती रहती थी पिता से मिलने।पिता जी तो नहीं रहें लेकिन वो अब भी आती हैं इसलिए नहीं की वो घर उनका भी है बल्कि इसलिए की उनको मुझसे उस घर से बहुत लगाव है। मुझे ये बाद में समझ आया कि बेटियां कुछ भी छोड़ दे लेकिन अपने घर की मिट्टी , आँगन की चिड़िया,पापा के कपड़े , माँ की नसीहतें, भाई के नखरे , तुलसी की बाती , रसोई का चूल्हा और चूल्हे की राखी… ये कभी नहीं छूटते उनसे।
ये बात मुझे जब समझ आयी तब तक तुम घर छोड़ चुकी थी। मैं मानता हूँ कि मुझे बुआ की बात नहीं माननी चाहिए थी लेकिन तब मैं उनसे कुछ कह ही नहीं पाया बचपन से पाला है उन्होंने मुझे नहीं बोल पाया उनसे कुछ। उन्होंने ही कहा था कि बहू से कह दो या तो पिता के घर में रह ले या यहाँ। रोज़ रोज़ आना जाना अच्छा नहीं है उसका, सब चार सवाल पूछते हैं फाल्गुनी की सेहत भी गिर रही है। पता नहीं क्या चल रहा था मेरे मन मे उस वक्त जो उनकी बात मान ली मैंने। यश की आंखे भर आयी।
ये पछतावा हैं सच का या सिर्फ दिखावा।
यार कितनी पत्थर हो गई हो तुम? यकीन तो करो मेरा। यकीन…? तब कहाँ थे तुम जब मुझे तुम्हारी सबसे ज्यादा जरुरत थी। तुम्हें पछतावा होता ना यश तो मेरे अगरबाबूजी की मिट्टी को कंधा देने जरूर आते लेकिन तुम नहीं आए थे उस वक्त। तब नहीं तो बाद में मेरा हाल जानने तो आते ही। मैं गिल्ट फील कर रहा था बहुत ज्यादा। क्योंकि जब बाबूजी की मौत हुई थी उस वक्त मैं शहर में था ही नहीं।मैं जब वहाँ से आया तब मुझे तुम्हारा फैक्स मिला। उसके बाद हिम्मत ही नहीं हो पाई मेरी ।तुम्हारा सामना करने की कोशिश कई बार की लेकिन तुम्हारी आँखो के सवालों का सोच कर डर जाता था। फाल्गुनी की कसम श्वेता अगर मुझे तुरंत पता चलता तो मैं बिलकुल साये सा तुम्हारे साथ चलता तुम बात करती या ना करती। मैं सच कह रहा हूँ श्वेता कोई बाप अपनी औलाद की झूठी कसम नहीं खा सकता। यश के आंसू उसकी गर्दन तक आ गए थे। श्वेता ने कुछ ना बोला बस रूआंसी हो उसे देख रही थी।
मम्मी.. मम्मी… पापा मुझे मम्मी के पास जाना है। नींद में ही फाल्गुनी कुछ बडबडाने लगती है।
श्वेता हम दोबारा साथ नहीं रख सकते अपनी बच्ची के लिए? वो पीछे देखता हुआ बोला। श्वेता चुपचाप बैठी रहती है शीशे की तरफ मुँह करके शायद रो रही थी। कोई जवाब ना मिलने पर यश को ज़रा भी हैरानी नहीं हुई। उसे एक ऑटो दिखा तो उसने कार रोक दी।
कार क्यों रोक दी? क्या तुम्हें पता चल गया की मैं कुछ गाने वाली हूँ इसीलिए तुम मुझे नीचे उतारने वाले हो..?
ऐसा तो …. यश के अंदर एक एक ख़ुशी समां गई।
तो मैं गा सकती हूँ , और तुम सुन सकते हो? हाँ लेकिन मैं ज़रा कान बंद कर लूँ। जाओ ना सुनो मैं तो गाऊंगी,” रात के हमसफर थक के घर को चलें……” झूम कर आ गई फिर सुबह प्यार की….यश ने मुखड़ा पूरा किया। और कार चल दी उन तीनों की दुनिया की ओर।
फाइनली! इस कहानी की तो हैप्पी एंडिंग हो गई।लेकिन हमारे आसपास जो ऐसी कहानियाँ हैं क्या उनकी भी हैप्पी एंडिंग हुई? या वे अभी इंतजार कर रहीं हैं get together होने का ताकि उन्हें बात करने का मौका मिले और गलतफहमियां दूर हो सकें। अगर आपकी भी अपने पार्टनर से अनबन है तो थोड़ा मौका दीजिये ना उन्हें भी ताकि उनकी सुन सकें या आपसे वें नाराज हैं तो convince करने की कोशिश किजिये, क्योंकि रिश्ते किसी पेड़ पर नहीं उगते ये जिन्दगी भर की पूंजी होते है इन्हें ज़रा ज़रा सी गलतफहमी पर बिखरने ना दिया कीजिये। फिर आदमी से गलती नहीं होगी तो गलतियां करने भगवान तो आएँगे नहीं।