वेद की कुर्सी खाली पड़ी थी और वो अपने शरीर को ढीला किये मेज पर आधा झुका हुआ बैठा था । वैसे तो रोज़ 10 बजे ही ऑफिस आता हैं लेकिन आज 8 बजे से ही ऑफिस में खुद को धकेलता हुआ ले आया था । ऐसा इसलिए कि उसका ना ऑफिस आने का मन था और न ही नंदिनी के घर में रहने का । इस बिकते हुए ऑफिस में अपने कुछ दिन और गुजारने की तमन्ना ने उसे ऑफिस वाला रास्ता दिखा दिया था। सारे कर्मचारियों के आगे ये सवाल था कि कंपनी बिक गई तो वो क्या करेंगे ? उन्हें यहीं काम करने को मिलेगा या …..? लेकिन वेद के आगे ये सवाल था कि कंपनी बिक गई तो नंदिनी क्या करेगी ? यही सोचता हुआ वेद किसी दूसरी दुनिया में खोया हुआ था ।
इतने में ही कमरे में हिल्स की आवाज से उसने नजरें घूमा कर देखा तो तनु खड़ी थी। वेद मेज से उतर गया। मैम ने क्लिंटाफ की तरफ से आए प्रपोजल को मना कर दिया है। जानता हूँ । वेद ने हलकी सांस में कहा। जानते हैं ! तनु की भवें सिकुड़ गई ,”जानते हैं तो कुछ किया क्यों नहीं ? ” उसकी आवाज में गुस्सा झलक आया । क्योंकि मैं कुछ कर नहीं सकता था ।
ओह प्लीज ! कभी तो कहीं तो ये भी कहिये की कर सकता हूँ हर बात में नहीं कर सकता क्या होता है कुछ कर भी सकतें हैं आप या नहीं ?
अच्छा मैंने इसके सिवा कब कहा कि मैं नहीं कर सकता। वेद ने तनु की आँखों से आँखे मिलाते हुए पूछा ।
सर इतनी पुरानी बात भी नहीं है जो आप भूल जाए वो तो आपके करने लायक ही काम था । अच्छा तो मतलब कि जो लड़कियां छेड़ी जाती हैं, जिनका रेप होता है उनके आरोपियों को सबक सीखना मेरा काम है ?
आप ऐसे कैसे बोल सकते हैं हम दोनों आपके लिए तनु और नंदिनी ना होकर लड़कियां हो गई ? मैं तो अब ऐसा ही बोलूंगा क्योंकि सुनते-सुनते मेरे कान पक चुके हैं । और तुम ये बताओ मुझे कि बात-बात पे नारीवादी बनने वाली तुम दोनों को एक आदमी से ऐसी उम्मीद करते हुए खुद से निराशा नहीं महसूस हुई ज़रा भी !
नहीं सर तब तो नहीं हुई थी लेकिन आज जरूर हो रही है । वोव्व …. हाँ तो तुम्हें तब ख़ुशी मिलती जब मैं अभिनव का गिरेबान पकड़ के उसे मरता जब उन दोनों भाइयों को मैं तबाह कर देता बर्बाद कर देता उनसे बदला लेता तुम दोनों के साथ जो हुआ उसके लिए।शायद तुम तब मुझपर प्राउड फील करती तब गर्व होता तुम्हें । मैंने ऐसा नहीं किया तो तुम्हें निराशा हुई तुम्हें लेकिन ज़रा बताओ तो किस बात के लिए मैं उन लोगों से भिड़ता जा कर।
मतलब की कोई रिश्ता ही नहीं है आपके मेरे या नंदिनी के बीच? है जरूर है अगर कोई रिश्ता ना होता तो यूँ खामोश तो ना रहता मैं । उसी रिश्ते ने, उसी फ़िक्र ने मेरे हाथ बाँध रखें है वरना एक बार एक लड़के ने मेरी बहन पर कमेंट ही किया था पूरे दो महीने मैं कॉलेज से सस्पेंड रहा था तो सोच लो उन तीनों ने तो इतना बुरा किया तुम दोनों के साथ मैं उन्हें ऐसे ही छोड़ देता। वेद तनु के पास आकर खड़ा हो गया और अपने दोनों हाथ उसके कंधो पर रख दिए । तनु वेद के चेहरे की तरफ ही देखती रही। बहुत थक गया हूँ तनु लड़ते-लड़ते सबसे अब तुमसे नहीं लड़ना चाहता तुम्हें देखता हूँ तो हिम्मत मिलती है मुझे इसीलिए तनु तुमसे नहीं … बिलकुल नहीं … मैं तुम्हारा गुस्सा समझता हूँ तो तुम्हें भी मेरी सिचुएशन समझनी चाहिए। अच्छा ये बताओ मैं उन तीनों को कुछ करता कुछ कहता उसके बाद क्या वो हाथ पे हाथ धरे बैठें रहते। मैं तो अभी कुछ दिन में अमेरिका लौट जाऊंगा वो बदला किससे लेते तुम दोनों से तब क्या करती तुम लोग ? फिर किसी वेद को आगे करती अपनी मदद के लिए ? मैंने आज तक उन्हें कुछ नहीं कहा कि तुम लोग ही कुछ करोगी उम्मीद थी मुझे ये तुम दोनों से लेकिन चलो नंदिनी की हालत ठीक नहीं लेकिन एक बार तुमने तो कोशिश की होती तब अगर मैं तुम्हारा साथ न देता तो तुम मुझे कुछ भी समझ सकती थी। लेकिन नहीं तुम चाहती हो बन्दूक भी मैं ही अपने कंधे पे रखू और उसे चलाऊं भी मैं ही कुछ तो तुम भी करो तनु। मैंने पुलिस के पास जाने से मना किया था क्योंकि इज्ज़त पे आंच अगर नंदिनी के आती तो तुम्हारा दामन भी बचा न रहता लेकिन अपनी तरफ से कुछ करने से तो मैंने तुम्हें नहीं रोका था ! मैंने अगर कुछ किया होता तो तुम दोनों में तुम्हारा खोया हुआ आत्मसम्मान कभी वापस नहीं मिलेगा, हमेशा किसी अपराधबोध का शिकार रहोगी तुम। मैं चाहता था कि तुम लोग फिर से सामान्य जिन्दगी जियो लेकिन शायद मैं ही गलत था तुम दोनों के सम्मान के लिए मैंने अपना आत्मसम्मान गिरा दिया मुझे मेरे लिए बहुत बुरा लग रहा है। वेद की आँखों में आंसू छलक आएं और गला रूंध गया ,”लेकिन ऐसा नहीं है कि तुम दोनों कुछ करोगी नहीं तो उन्हें मैं सबक नहीं सिखाऊंगा मैंने बहुत वक्त से खुद को संभाला है लेकिन आगे नहीं इंडिया छोड़ने से पहले मैं सारा हिसाब बराबर कर जाऊंगा।तुम दोनों की हिफाजत के साथ मैं उन तीनों के लिए भी कुछ कर जाऊंगा, मुझे आज कहते हुए बहुत बुरा लग रहा है लेकिन ये सच है कि औरत वाकई कमज़ोर होती है । वेद तनु को उसी तरह छोड़ के केबिन के बाहर निकल गया और तनु डबडबाई आँखों के साथ लडखडा कर टेबल के किनारे खड़ी हो गई। उसने इतना कुछ क्यों सोचा था ? उसका ये सवाल खुद से ही था।उसने वेद को बहुत गलत समझ लिया था अब उसे खुद पे ही काफी गुस्सा आने लगी थी।
वेद फाइल्स में उलझा हुआ था पर मन ज़रा भी नहीं कर रहा था किसी तरह 5 बजने के वेट में खुद को रोके हुए था। बार-बार घड़ी की तरफ नजरे घूमाता और फिर वही आँखे किसी पेपर या फाइल में गड़़ा देता । फाइल्स को खोलते ही अगर उसे किसी फाइल में नंदिनी की साइन दिख जाती तो अपनी उंगलियों से उसे छूने लगता और उसी में खो जाता।इस वक्त भी यही कर रहा था तभी उसकी नज़र केबिन में आती तनु पर पड़ी तो तुरंत उस फाइल को साइड में खिसका कर हाथ में दूसरी फाइल पकड़ ली।
तनु कमरे में एक कप चाय के साथ आयी थी और वो चाय चुपचाप वेद के आगे टेबल पर रख दी । करिश्मा को भेज देती या महेश से बोल देती वो चाय पंहुचा देते मुझ तक , तुम बेवजह काम छोड़ के आयी अपना । वेद ने चाय का कप अपने हाथों में उठा लिया।
मैंने बनाई थी आपके लिए ! तनु ने कुछ अचकचा कर कहा ।वेद के होठों तक आते-आते कप एकदम रुक गया । वो मुस्कुराया और आहिस्ते से कहा ,” थैंक यू।”।
सॉरी , तनु की आवाज़ सुबह की तरह ही भीगी हुई थी । सॉरी टू, वेद ने थोड़ा रुक के कहा मगर दिल से कहा ।
मुझे नहीं पता कि आप कैसे करेंगे लेकिन मुझे पता है आप कर लेंगे । मैम को ये कंपनी बेचने से आप रोक सकतें हैं और क्लिंटाफ से डील के लिए भी आप उन्हें राजी कर सकते है लेकिन कैसे न मुझको इसका ज़रा भी अंदाजा है और ना शायद आपको ही पता होगा। बायदवे अगर चाय अच्छी बनी हो तो तारीफ कर दीजियेगा क्योंकि पहली बार बनाई है। इतना कह कर वो कमरे के बाहर चली गई वेद के जवाब का इंतजार भी नहीं किया। वेद ने दो सिप लेकर चाय टेबल पर रख दी और सोचने लगा क्या उसे एक बार और कोशिश करनी चाहिए? उसने घड़ी की तरफ देखा तो घड़ी खुशी-खुशी 5 बजने का इशारा कर रही थी। वेद खड़ा हो गया और अपनी कार की चाबी अपनी जेब में डाल ली।
वेद जब नंदिनी के कमरे में पहुँचा उस वक्त वो अपने वायलिन को साफ कर रही थी शायद अकेलापन काफी महसूस कर रही थी। करें भी क्यों ना उस हादसे से अभी तक उबर नहीं पायी है इसीलिए ज्यादा बाहर जाती-आती नहीं ना कोई खास मिलने वाला ही आता है । घर पर 24 घंटे रूपा ही उसके साथ रहती है बस।
आज आप सुबह नहीं आएं थें? नंदिनी ने वेद को देखा तो उससे पूछा लेकिन वेद ने उसे अनसुना करके साथ में लाए रजनीगंधा के फूलों को एक सुराहीदार फ्लाक्स में डाल दिया और उसमें पड़ी पुरानी फुल छड़ी को निकाल के फेंक दिया। उसने सुना था कि रजनीगंधा की खुश्बू से स्ट्रेस दूर होता है और नींद अच्छी आती है इसीलिए 10-12 दिनों से वो नंदिनी के सर के पास दो-दो दिन के अंतराल पर रजनीगन्धा की छड़ को फ्लाक्स में कर के लगा के रख देता था। आज भी वही कर रहा था। वेद को अपने काम में व्यस्त देख नंदिनी ने उससे दोबारा पूछा । आप सुबह कहीं व्यस्त हो गए थें क्या ?
व्यस्त? अब कहाँ व्यस्त रहना रहेगा दो ही चार दिन की ही बात है नंदिनी जी फिर तो कम्पनी भी जाएगी और काम भी तब तो ऐसे ही खाली रहा करूँगा और सिर्फ मैं ही क्यों आप भी तनु भी , राधेलाल जी , मिश्रा जी , कनिका जी , अली साहब और भी बाकी कर्मचारी भी सारे जल्द ही फ्री हो जाएंगे । वेद ने जेब से रुमाल निकाल कर अपने हाथ पोछ लिए ।
चड्ढा जी ने वायदा किया है मेरी कम्पनी के किसी भी कर्मचारी को वो काम से नहीं निकालेंगे ।
वायदे का क्या है नंदिनी जी वो तो तोड़ने के लिए ही बनायें जातें हैं फायदा लगा तो वायदा कर लिया और नुकसान लगा तो वायदा तोड़ दिया। फिर कोई भी समझदार बिज़नेसमैन इस बात पर तैयार ही नहीं होगा क्योंकि जब उनकी कम्पनी में आपके कर्मचारी काम करेंगे तो उनके कर्मचारी कहाँ जाएँगे ?
वो सब मुझे नहीं पता मैं कॉन्ट्रेक्ट भी साइन करुँगी इस बात पर। हाँ और उस एक साइन से तुम्हारे 10 सालों की मेहनत पर पानी फिर जाएगा लोगों की उम्मीदें टूट जाएँगी , एक ब्राण्ड से भरोसा उठ जाएगा और …. एक साइन से अभिनव जीत जाएगा हाँ गलत करके भी जीत जाएगा वो । वेद ज्यादा दिखावटी नहीं रह सका और उसके दिल के शब्द आप ही आप बाहर आने लगे।
अभिनव नहीं जीता और ना मैं हारी हूँ लेकिन अब ये काम मुझे नहीं पसंद रहा हैं बस। तुम अभिनव से हारी नहीं बल्कि बहुत बुरी तरीके से हारी हो इतना डर गई हो कि क्लिंटाफ जैसे ब्राण्ड पर भी भरोसा नहीं कर पायी और अपने सपने को मरने के लिए छोड़ दिया। वो सपना जिसके लिए तुमने समीर को छोड़ा था वो सपना जिसके लिए तुमने वाइटमून को भी कुछ नहीं समझा वो सपना जिसने तुम्हें एक फैमिली नहीं बनाने दी वो सपना ……
इनफ वेद ! नंदीनी चीख पड़ी । ,” मैंने कुछ नहीं छोड़ा बस अपनी बेतुकी ज़िद्दे छोड़ी है , जो मेरे लिए अच्छी नहीं थी । कौन अच्छा नहीं था नंदिनी , समीर अच्छा नहीं था ? अभिनव अच्छा नहीं था ? मिस्टर शुक्ला अच्छे नहीं थें या कौन..? जब तुम्हें एक दिन यही करना था तो कौन बुरे थे ये लोग भला। रहती आराम से अभिनव के पास ही क्यों अपने सपने के लिए उसे छोड़ा था । मुझे तुम अच्छे नहीं लगते वेद तुम अच्छे नहीं हो मेरे लिए । नन्दनी वेद के सामने खड़ी हो गई आकर। अच्छा है कि अच्छा नहीं हूँ तुम्हारे लिए क्योंकि जो अच्छा लगता है तुम्हें तुम उसे परेशान बहुत करती हो और छोड़ के जाती हो सो अलग ।
ये बात सिर्फ इंसानो पर ही नहीं तुम्हारी कम्पनी पर भी लागू होती हैं । दरअसल तो तुम्हें एक धोखेबाज कहना चाहिए जो लोगों को झूठे सपने दिखा कर उन्हें बर्बाद कर देता है तुम भी कात्यायन ब्रदर्स से कुछ कम नहीं हो। वो तो फिर भी तुमसे अच्छे है कम से कम अमीरों को लुटते है तुमने तो देश की मजलूम जनता को धोखा दिया है नंदिनी। अरे…अरे सिर्फ आम लोग ही क्यों तुमने तो क्लिंटाफ जैसी कम्पनी को भी लटका दिया जिसके एक छोटे से प्रोड्क्ट को भी मार्केट में उतारने पर कोई भी कम्पनी खुद को खुशकिस्मत समझती है। वेद बस करो अपनी बकवास कम्पनी मेरी है मैं चाहे जो मर्जी करें वो करुँ तुम इस तरह मुझे या मेरी कम्पनी को नहीं कह सकते ना इतना हक़ है तुम्हें और ना इतनी औकात ही हैं तुम्हारी, और अगर तुम्हें अपनी पोस्ट जाने का खतरा हैं तो बोलो तुम्हारे लिए भी बात कर लूंगी । नंदिनी ने वेद को बिना छूए तमाचा जड़ दिया। wow! तुम्हें क्या लगता है तुम्हारी उस दमघोटू कंपनी में मुझे और काम करना होगा या तुम जैसी डरने वाली लड़की की मुझे सिफारिश की जरुरत पड़ेगी ? जो अभिनव जैसे कायर आदमी….
वेद….नंदिनी बहुत तेज चीखी और मेज पर रखें फ्लाक्स को फेंककर वेद के चेहरे पे मार देती है । पूरे कमरे मे घनघोर सन्नाटा छा गया थोड़ी देर के लिए । वेद थोड़ी देर सीधा खड़ा रहा अचानक से उसके आँख के किनारे से खून का फव्वारा फुट पड़ा और उसके कदम लडखडा गएँ। उसने दोनों हाथ से कसके अपनी एक तरफ की आँख को बंद कर किया और कमरे के बाहर जाने की कोशिश करने लगा। खून इतनी तेजी से बह रहा था कि एक पल में ही सर से होता हुआ उसके पैरों तक आ गया था उसकी शर्ट के साथ-साथ उसकी पैंट भी खून से सन गई थी। वेद… नंदिनी जैसे किसी नींद से जगी और वेद के पीछे बढ़ी।
वेद दो कदम चला और धड़ाम से बेहोश होकर फर्श पे ही गिर गया। नंदनी दौड़ कर उसे उठाने की,जगाने की कोशिश करने लगी लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
To be Continued. ……