हेलो दोस्तों! अपने वायदे के मुताबिक मैं स्टोरी का दूसरा भाग भी लेकर आ गया हूँ। वैसे तो घर में त्यौहार का माहौल होगा काफी व्यस्त होंगे आप सब लेकिन मुझे यकीन है कि मेरे लिए थोड़ा सा वक्त तो निकाल ही सकते हैं आप? आख़िरकार मैं जो आपके लिए वक्त निकाल कर प्यारी-प्यारी प्रेम कहानियाँ जो लाता हूँ। खैर इस व्यस्त दिनचर्या में मैं आपका ज्यादा वक्त ना लेते हुए कहानी का दूसरा भाग शुरू करता हूँ। अभी ना सही जब आपको फुर्सत मिले तब इसे पढ़ लेना।
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आज महीने की आखिरी तारीख है यानि फाल्गुनी के स्कूल में पेरेंट्स-टीचर मीटिंग। आज श्वेता को भी स्कूल जाना था और यश को भी। श्वेता को यही दिन सबसे खराब लगता था जब उसे मीटिंग में यश के साथ बिलकुल नॉर्मल होने का नाटक करना पड़ता था। इसके उलट यश ऐसे बिलकुल सज-धजकर स्कूल जाता था कि श्वेता उसे देखे तो उसे लगे की वो पहली बार यश को देख रही है और वही भावनाएं उनके दिल में करवटें ले जैसे पहली बार ।
हमें बहुत दुख है साथ में हैरानी भी कि कभी अपने क्लास की टॉपर रहने वाली फाल्गुनी पिछले कुछ महीनों से काफी low परफॉर्म कर रही है, अबकी बार तो हिंदी और मैथ के टेस्ट में वो फेल हो गई जबकि हमारे टीचर्स की पढ़ाने की क्षमता में कोई परिवर्तन नहीं आया है, ना ही अपने दोस्तों के साथ ज्यादा बातचीत ही करती है, ऐसा क्यों हो रहा है फाल्गुनी के साथ मिस्टर एंड मिसेस यश कुमार ?
जी हम तो उसकी पढ़ाई पर पूरा ध्यान देते हैं, एक्स्ट्रा एक्टिविटिज में भी पार्टिसिपेट करवाते हैं, उसकी डाइट का भी पूरा ख्याल रखा जाता है उसे कोई कमी नहीं होने देतें है। श्वेता जवाब देती है प्रिंसिपल के सवाल का।
मिसेस यश, सिर्फ इन्ही बातों से बच्चे का माइंड फ्रेश नहीं हो जाता। बच्चों को खुश रखने के लिए आसपास का माहौल , घर का माहौल , उससे मिलने वाले लोगों का व्यवहार ये सब भी बहुत मायने रखता है। हमें बच्चे से जुड़ी छोटी-छोटी चीज़ देखनी पड़ती है कि बच्चा किस पर एग्रेसिव है किस पर खुश और किस बात पर उदास , फिर उन फीलिंग्स के पीछे की वजह भी जाननी पड़ती है और उसका समाधान भी करना होता है। बहुत ज्यादा अकेलापन या किसी प्रकार का डर भी बच्चे को दब्बू बना सकता है।
हम समझ गए है सर की बात कहना क्या चाहते हैं आगे से हम इन सब बातों को भी ध्यान रखेंगे और उसके व्यवहार पर नज़र रख हम उन कमियों को भी दूर करेंगे। यश कहता है।
मीटिंग खत्म होने के बाद बाहर निकलते हुए यश बोला “, श्वेता फाल्गुनी का बर्थडे आने वाला है मैंने घर पर पार्टी रखने की सोची है।
तो ठीक है मुझे क्यों बता रहें हो , खैर बताकर भी अच्छा किया वरना मैं भी यही सोच रही थी , तुम फाल्गुनी को 2 दिन पहले लेकर चलें जाना स्कूल से ही अपने साथ और बर्थडे के बाद वापस उसे मेरे पास छोड़ जाना।
तुम नहीं आ रही बर्थडे पर ?
क्यों एक दिन भी नहीं संभाल सकते तुम उसे । श्वेता ने नजरों से भी यही सवाल यश की तरफ उछाला।
“यूँ तो सम्भाल ले जाता हूँ , बड़े-बूढ़ो की कराहती आवाजें… पर उन नन्हे लफ्जों का क्या करुँ लो लब से गिरते ही नहीं..!” ठीक है मैं फाल्गुनी को दो दिन पहले ही ले जाऊंगा तुम्हारा भी अगर दिल हो आने का तो आ जाना मैं इंतजार करूँगा क्योंकि बेटी तुम्हारी भी है।
तुम अब भी लिखते हो। आवाज़ धीमी थी श्वेता का।
आदत है कमबख्त छूटती ही नहीं।
फाल्गुनी के बर्थडे के 2 दिन पहले यश उसे अपने साथ लेकर चला जाता है । महीनों बाद पापा से मिली फाल्गुनी पहले बहुत गुस्सा होती है फिर कुछ चॉकलेट्स मिलने पर मान जाती है। सारा दिन पापा के साथ मौज-मस्ती करके थक जाती है तो मम्मी के पास जाने की ज़िद करने लगती है। बेटा मम्मी काफी व्यस्त थी इसीलिए मैं आपको अपने साथ ले आया । यश फाल्गुनी को बहलाने की कोशिश करता है। पापा ….!
हाँ ।
पहले आप दोनों को फुर्सत होती थी पर जबसे मम्मी नाना के घर गई थी तब से कभी आपको फुर्सत होती कभी मम्मी को। आप दोनों मेरे लिए साथ में फुर्सत नहीं निकाल सकते क्या ? मुझे ऐसे अच्छा नहीं लगता मेरे सारे दोस्त अपने मम्मी पापा के साथ खूब मस्ती करते हैं उनके साथ घूमने जातें हैं मेरा भी मन आप दोनों के साथ घूमने को करता है पापा। क्या आप दोनों अब हमेशा इसी तरह बिजी रहेंगे? कभी दोबारा से आप दोनों साथ में घर नहीं आ सकते जैसे पहले आतें थें ? मासूम सी फाल्गुनी बहुत गहरा सवाल कह दिया यश से । वो इस सवाल का कोई जवाब तक ना दे पाया, बिलकुल जड़ सा हो गया जैसे सांस ही ना आ रही हो सीने में। अंदर से बाहर तक किसी अपराधबोध से ग्रस्त हो गया यश। अब वो क्या कहें कि शायद वो दिन अब कभी ना आए! क्या सच में ? नहीं श्वेता इतनी पत्थर दिल तो नहीं हो सकती अपनी बच्ची के लिए ?उसे एक बार और रिश्ते को मौका देना चाहिए खुद के लिए ना सही मेरे लिए ही। वरना तो फाल्गुनी मुझे ही दोषी मानती रहेगी और मैं ताउम्र अपनी बच्ची की नज़र में एक अपराधी बनकर जीऊंगा। मुझे उससे बात करनी होगी जानना होगा की क्या मेरी गलती इतनी बड़ी थी कि जिन्दगी भर के लिए रिश्ता तोड़ लिया जाए।
यश का दूसरा दिन भी शॉपिंग करने और फाल्गुनी को घुमाने में ही बीत रहा था।वो अपनी बेटी के आठवें बर्थडे पर कोई कमी नहीं रखना चाहता था इसीलिए एक दिन पहले से ही सारी खरीदारी कर रहा था। पर एक कमी थी जो वो लाख चाह कर भी पूरी नहीं कर पा रहा था वो थी माँ की कमी।
घूमते-घूमते रात हो जाती है ये बात यश को तब पता चलती है जब फाल्गुनी को नींद आने लगती है। फाल्गुनी को पिछली सीट पर लिटा कर यश स्टीरिंग संभालता है। किस-किस को इनविटेशन दे दिया ? फाल्गुनी का कोई दोस्त छूटा तो नहीं? केक का कलर क्या होना चाहिए? अरे घर को सजाएगा कौन ?हर बार तो श्वेता सजाती थी। और ना जाने कितने ही सवालों को सोचता हुआ यश ड्राइव कर रहा था साथ ही सड़क पर चांदनी की तरह बिखरी लाइट्स को भी देख रहा था।आधा शहर सो चुका था इसीलिए शोर काफी कम था पर अभी भी कुछ ढाबे और दुकाने खुली हुई थी जिनपर 60-70 के दशक के गाने बज रहे थे जो यश की उदासी को तोड़ने की कोशिश कर रहें थें। यश भी अपना रेडियो धीमी आवाज़ पर शुरू कर देता है ताकि कहीं फाल्गुनी ना जग जाए। रेडियो खुलते ही “लग जा गले की फिर हसीं रात हो ना हो” गाना बज रहा था , उसे सुनकर यश की उदासी जैसे दर्द में बदलने लगती है वो तुरंत रेडियो बंद कर देता है और तेजी से ड्राइव करने लगता है। लेकिन उसके कानों में अब भी वो लाइन गूंज रही थी उसे लग रहा था की जैसे श्वेता कुछ कह रही हो शायद इसी। ” पास आइये कि हम नहीं आएँगे बार-बार ” लाइन की वजह से श्वेता को ये गाना बहुत पसंद था। जब कभी श्वेता नीचे फाल्गुनी का टिफिन बना रही होती और उसे अपनी टाई बंधवानी होती तो श्वेता को आवाज़ लगता तब श्वेता नीचे से यही लाइन गुनगुना देती और यश को खुद नीचे आना पड़ता ।
यश सरपट भागती सड़क पर लाइटों से आँखे बचाकर कार भागता ही जा रहा था जैसे उसे कहीं रुकना ही नहीं जैसे उसकी कोई मंजिल ही नहीं। अचानक वो गाड़ी रोकता है श्वेता को सड़क किनारे खड़ा देखकर।
माँ-बाप के बीच की दूरियां बच्चे को या तो हीन भावना और कम आत्मविश्वासी बना देती है जिससे उसमें निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है और समाज में उसके शोषण की भी आशंका बनी रहती है। और या तो उसे अपराधी प्रवत्ति का बना देती है जिद्दी, संवेदनहीन जिसे दूसरों के दुःख दर्द से कोई फर्क नहीं पड़ता। ऐसे बच्चों को दूसरे को चोट पंहुचा कर मज़ा आने लगता है। अकेलेपन में रहते-रहते ये अकेलेपन से इतनी मोहब्बत करने लगते हैं कि ज्यादा भीड़ देखने पर आक्रामक हो जाते है। एक समय के बाद इन बच्चों को संभालना माँ या पिता के बस में भी नहीं रह जाता। इसीलिए अगर आप भी एक seperate parent है तो अपने बच्चे के लिए ही सही रिश्ते को एक बार मौका देकर देखिये ना !
Thank you for your sharing. I am worried that I lack creative ideas. It is your article that makes me full of hope. Thank you. But, I have a question, can you help me?